इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा है कि धर्म परिवर्तन विरोधी कानून प्रारम्भिक चरण में है. यह समाज में व्याप्त कुप्रथा पर रोक लगाने के लिए बनाया गया है. यदि अदालत अभियोजन कार्यवाही में हस्तक्षेप करेगी तो यह कानून अपना उद्देश्य हासिल करने में विफल हो जायेगा.
इसी के साथ कोर्ट ने धर्म बदलने के लिए दबाव डालने की आरोपी महिला रूक्सार को राहत देने से इंकार कर दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति जे जे मुनीर तथा न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की खंडपीठ ने रुक्सार की याचिका को खारिज करते हुए दिया है.
मालूम हो कि पीड़िता ने चित्रकूट की कोतवाली नगर थाने में भारतीय दंड संहिता की धारा 376 व 506 तथा धारा 3 व 5 (1) धर्म परिवर्तन विरोधी कानून के तहत एफआईआर दर्ज कराई. आरोप लगाया कि जब वह कक्षा 10 में थी अब्दुल रहमान उसका हर जगह पीछा करता था और एक दिन अपने घर ले गया और दुष्कर्म किया. उसके बाद कई बार दुष्कर्म करता रहा. रहमान की शादी हो गई उसके बाद उसके छोटे भाई इरफान ने भी दुष्कर्म किया और याची रूक्सार ने इस्लाम कबूल कर उसके पति के भाई इरफान से निकाह करने का दबाव डाला.
30 मार्च 24 को उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया और बुर्का पहनाकर ट्रेन में कर्वी के लिए बैठा दिया, जहां रहमान ने उसे घर ले जाकर दुष्कर्म किया और भेद खोलने पर पूरे परिवार को जान से मारने की धमकी दी.
अधिवक्ता का कहना था कि याची महिला है. सह अभियुक्तों पर दुष्कर्म का आरोप है, इसलिए उसे राहत दी जाय. किंतु कोर्ट ने यह कहते हुए कोई राहत देने से इंकार कर दिया कि याची पर इस्लाम कबूल कराने व अपने पति के भाई से निकाह करने के लिए दबाव डालने का आरोप है. कोर्ट ने कहा कि ऐसे में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता.
साभार – हिन्दुस्थान समाचार