Haryana-Punjab SYL Dispute: भारत के दो पड़ोसी राज्य हरियाणा-पंजाब, जो किसी समय पर एक ही राज्य हुआ करता था. आज ये दोनों राज्य पानी के बंटवारे को लेकर आमने-सामने खड़े हैं. पंजाब की AAP सरकार ने हरियाणा को भाखड़ा बांध के तहत दिए जाने वाले पानी में कटौती कर दी हैं, जिसके बाद दोनों राज्य सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप का खेल शुरू हो गया है. ऐसा पहली बार नहीं है जब इन दोनों राज्यों के बीच पानी को लेकर विवाद हुआ है.
इससे पहले सतलुज-यमुना लिंक नहर को पिछले कई सालों से हरियाणा-पंजाब में पानी के लिए जंग जारी है. यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच चुका है, लेकिन आज तक इस पर कोई भी फाइनल फैसला नहीं लिया गया है. आइए जानें क्या है सतलुज-यमुना लिंक मुद्दा जो दोनों राज्यों के बीच बना विवाद का कारण?
जानिए क्या है SYL?

सतलुज-यमुना लिंक नहर है जो 212 किलोमीटर लंबा है. इस नहर का 90 किलोमीटर हिस्सा हरियाणा और 122 किलोमीटर हिस्सा पंजाब शहर में आता है. जब 1 नवंबर, 1966 को हरियाणा, पंजाब राज्य से अलग हुआ था. उस दौरान पंजाब रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट के तहत दोनों राज्यों के बीच कई चीजों को लेकर बंटवारा हुआ था, जिसमें जल भी शामिल था.
यदि ये दोनों राज्य आपसी सहमति के साथ समझौता नहीं कर पाते हैं, तो उस दौरान केंद्र सरकार अहम भूमिका निभाएगा.
दोनों राज्यों के अलग होते ही उनके हिस्से का पानी देनी के लिए प्लानिंग शुरू कर दी गई थी, लेकिन पंजाब ने इस योजना में अपनी सहमति नहीं दिखाई.
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जानिए क्या थी योजना?
साल 1966 में ही ब्यास-सतलुज नदी का पानी हरियाणा को देने के लिए सतलुज-यमुना लिंक (SYL) बनाने की प्लानिंग की गई. लेकिन पंजाब को यह योजना मंजूर नहीं थी. उनका मानना था कि यह योजना रिपेरियन सिंद्धात के खिलाफ है.
आपको बता दें, रिपेरियन सिंद्धात का मतलब जिस राज्य/ देश में नदी बहती है, उस नदी के पानी पर किसी अन्य राज्य/देश का हक नहीं होता है.
हरियाणा-पंजाब राज्यों के अलग होने के 10 साल बाद (1976) केंद्र ने एक अधिसूचना जारी की थी. जिसके तहत दोनों राज्यों को 3.5 मिलियन एकड़-फीट पानी मिलेगा.
18 नवंबर, 1976 में पंजाब ने हरियाणा से एक करोड़ रुपये लेकर नहर बनाने की मंजूरी दी थी, लेकिन साल 1979 में पंजाब ने अपना मन बदल दिया. इसके बाद हरियाणा ने इस मामले के लिए साल 1979 में ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. पंजाब ने राज्य पुनर्गठन एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
लंबे समय तक चले विवाद के बाद साल 1981 में सतलुज-यमुना लिंक को बनाने के लिए दोनों राज्यों के बीच सहमति बनी. हरियाणा-पंजाब और राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्रियों ने इंदिरा गांधी के नेतृत्व में इस नहर को बनाने की डील फाइनल की. साल 1982 में पंजाब के कपूरी गांव में नहर बनाने का काम शुरू हुआ.
साल 1985 में तत्कालीन पीएम राजीव गांधी और शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने पानी के आकलन के लिए एक ट्रिब्यूनल बनाने पर सहमति जताई. इस ट्रिब्यूनल का गठन सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश वी. बालकृष्ण एराडी की अध्यक्षता में किया गया.
साल 1997 में इस ट्रिब्यूनल ने हरियाणा को 3.83 मिलियन एकड़-फीट (MAF) और पंजाब को 5 MAF पानी बढ़ने की मांग की थी.
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला
हरियाणा ने सतलुज-यमुना लिंक नहर को बनाने के लिए साल 1996 में सुप्रीम कोर्ट की मदद ली. सर्वोच्च अदालत ने भी हरियाणा के पक्ष में फैसला सुनाते हुए साल 2002 और 2004 में नहर के काम को पूरा करने का आदेश दिया था. पंजाब शुरूआत से ही इस नहर को बनाने के पक्ष में नहीं था.
साल 2004 में हुए विधानसभा सत्र में SYL नहर को बनाने की बजाय रद्द करने का प्रस्ताव (पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट्स एक्ट PTAA) पारित किया गया. जिसके बाद नहर बनाने का तय समझौता दोनों राज्यों के बीच निरस्त हो गया और निर्माण कार्य रुक गया.
साल 2015 में हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट से प्रेसिडेंट के रेफरेंस पर इस मामले की सुनवाई करने के लिए एक पीठ बनाने का अनुरोध किया था.
साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने 2004 में पंजाब विधानसभा में पास हुए पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट्स एक्ट (PTAA) की वैधता पर निर्णय लेने के लिए सुनावई की. जिसमें बोला गया कि पंजाब अपने जल बंटवारे वाले तय समझौते से पीछे हट रहा है.
इसके बाद साल 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों राज्यों के सीएम को SYL नहर के मुद्दे पर केंद्र के साथ बातचीत कर इस मामले में जल्द से खत्म करने का निर्देश दिया.
दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच बैठक भी हुई, लेकिन आज तक इस मामले में कोई भी फैसला नहीं लिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा कि अगर दोनों राज्यों में नहर बनाने को लेकर सहमति नहीं बनती, तो SC खुद इस नहर को बनाएगी.
जानिए इस मामले में क्या है हरियाणा-पंजाब का पक्ष
हरियाणा:
- पंजाब द्वारा इस्तेामल किया जा रहा पानी हरियाणा का है, इसलिए वह जल संकट के बढ़ते मामलों को हवाला देते हुए SYLनहर बनाने की मांग हमेशा करता है.
- हरियाणा सरकार का कहना है कि किसानों को सिंचाई के लिए पानी की बहुत समस्या हो रही है. कई इलाकों में भू-जल का स्तर 1700 फीट तक कम हो गया है. जिसे लोगों को पीने के पानी की समस्या से भी जूझना पड़ रहा है.
पंजाब:
- वहीं पजाब हमेशा से अपने राज्यों को एक्स्ट्रा पानी देने का कड़ा विरोधी करती है. पंजाब का कहना है कि उनके राज्य को खुद पानी की कमी का सामना करना पड़ रहा है.
- पंजाब सरकार का दावा है कि साल 2029 तक कई जिलों में पानी खत्म हो सकता है.
- सरकार का कहना है कि सिंचाई के लिए पहले से राज्य में पानी का दोहन किया जा रहा है, ऐसे में किसी अन्य राज्य के साथ पानी बांटना असंभव है,
जानिए क्या है सतलुज-यमुना लिंक नहर का महत्व?
दोनों राज्यों को बराबर मिलेगा पानी:
सतलुज-यमुना लिंक नहर बनाने का उद्देश्य हरियाणा-पंजाब में नदी जल के समान बंटवारा को सुविधाजनक करना है. जल संसाधनों तक उचित रुप से पहुंचाने और असमान वितरण से उत्पन्न होने वाली समस्याओं को खत्म करने के लिए इस नहर का बनान जरुरी है.
लंबे समय से चल रही पानी की समस्याओं को खत्म करना:
सतलुज-यमुना लिंक नहर के बनने से हरियाणा-पंजाब के बीच पानी को लेकर चल रहे विवाद खत्म हो सकते हैं. साथ ही सालों से चल रही राजनीतिक और कानूनी लड़ाई को भी सुलझा सकती है.
किसानों को होगा फायदा:
सतलुज-यमुना लिंक नहर के बनने से दोनों राज्यों के किसानों को फायदा होगा. उचित पानी के होने से किसान प्रभावी ढंग से खेती कर सकते हैं, जिससे उत्पादकता बेहतरीन होगी.
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