Opinion: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने अंदर तक झकझोर दिया है. कहने को कहा जा रहा है कि विदेशी साजिश थी, पाकिस्तान का हाथ था लेकिन यह हाथ घर के अंदर आया कैसे? घर के भी कोई अपने थे, जो इस पूरे आतंकवादी घटनाक्रम में शामिल हैं. “इंटेलिजेंस” इनपुट कह रहा है कि छह आतंकियों में से तीन भारत के नागरिक थे, जिन्होंने विदेशी इस्लामिक आतंकवादियों के साथ मिलकर हिन्दुओं का खून बहाया है.
घटना के बाद से मीडिया में कई रिपोर्ट आई हैं, जिनमें से अनेकों में इस बात को दोहराया गया है कि पुलवामा हमला पार्ट-1 था जो 14 फरवरी 2019 को हुआ था, जिसमें 40 भारतीय सुरक्षा कर्मियों की जान गई थी. इस हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी. अब पहलगाम हमला पार्ट-2 है जिसे 22 अप्रैल 2025 को 26 लोगों की जान लेकर अंजाम दिया गया है और कई घायल हैं. हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा के फ्रंट ग्रुप द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने ली है, जो पाकिस्तान का आतंकी संगठन है. टीआरएफ जम्मू-कश्मीर में सक्रिय है और भारत इसे पहले ही आतंकवादी संगठन घोषित कर चुका है. यह गुट 2019 में तब सामने आया था, जब जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाया था. टीआरएफ ने अब तक सुरक्षाकर्मियों और आम लोगों पर कई हमले किए हैं, जिनमें 2020 में भाजपा नेता और उनके परिवार की हत्या के साथ 2023 में पुलवामा में कश्मीरी पंडित संजय शर्मा की हत्या भी शामिल है. साल 2019 के पुलवामा हमले में भी टीआरएफ का नाम आया था.
आज न जानें कितने टीआरएफ जैसे आतंकी संगठन भारत में पल रहे हैं. देखने में यही आता है कि इनके निशाने पर गैर मुसलमान खासकर हिन्दू रहते हैं. आखिर हिन्दुओं को ही क्यों टारगेट किया जाता है? जो लोग आज इसे हमला पार्ट-2 कह रहे हैं, उन्हें भी समझ लेना चाहिए कि यह कोई एक, दो, तीन, चार, पांच या अन्य जिसे गिनतियों में समाहित किया जा सके वह जिहादी या गैर मुसलमानों के प्रति चलनेवाला अभियान (पार्ट) नहीं है. भारत में मोहम्मद बिन कासिम से लेकर अब तक अनेकों आक्रमण हो चुके हैं. इतिहास में मुहम्मद बिन कासिम के बाद 10वीं शताब्दी से तुर्क आक्रमण शुरू हुए, जिनमें महमूद गज़नवी, मुहम्मद गोरी, बाबर, तैमूर लंग, अलाउद्दीन खिलजी जैसे अंध जिहादियों के आक्रमण प्रमुख हैं.
भारत पर पहली बार मुस्लिम आक्रमण 712 ईसवी में हुआ था, तब से लेकर अब तक 1337 साल गुजर चुके हैं, इतने दिनों में सांस्कृतिक भारत कई हिस्सों में बंट चुका है. भारतीय उपमहाद्वीप के अनेक देश इसके प्रमाण हैं, पीढ़ियों के स्तर पर भारत आज अपनी 45 पीढ़ियां औसतन पार कर चुका है, उसके बाद भी शेष भारत और यहां का ज्यादातर बहुसंख्यक समाज (हिन्दू) है, वह समझना ही नहीं चाहता कि आखिर ये इस्लामिक जिहादी घटनाएं बार-बार क्यों हो रही हैं. क्यों मजहब के नाम पर अलग देश लेने के बाद भी ये रुकने का नाम नहीं लेतीं.
इसी संदर्भ में यह ऐतिहासिक प्रसंग है, जिसके मर्म को सभी को समझना चाहिए; जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे मौलाना मुहम्मद अली ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि, “अपने मजहब और अकीदे के मुताबिक मैं एक गिरे से गिरे और बदकार मुसलमान को भी महात्मा गाँधी से बेहतर समझता हूँ।” यह चर्चित घटना सन् 1924 की है, जिस का विवरण डॉ. आंबेडकर ने अपनी पुस्तक पाकिस्तान और पार्टीशन ऑफ इंडिया (1940) में दिया है. पूछने पर मौलाना ने अपनी बात को बार-बार दुहरा कर कहा, ताकि गलतफहमी न रहे. समझने के लिए यहां इतना जान लें कि मौलाना मुहम्मद अली बड़े प्रतिष्ठित आलिम थे और गाँधीजी के अन्यतम सहयोगी भी रहे थे. इससे भी मौलाना की संजीदगी समझी जा सकती है. मौलाना ने अपने रिलीजन का केंद्रीय तत्व बड़ी सुंदरता से रखा था. जहाँ आचरण नहीं, विश्वास मुख्य है.
इसी से अभी भारत, इजराइल, सीरिया, ईराक, युरोप के देशों में तबाही कर रहे लश्कर-ए-तैयबा, पासबान-इ-अहले हदीस, जैश-ए-मोहम्मद, तहरीक-ए-फुरकान, हरकत-उल-मुजाहिदीन, हरकत उल-अंसार, हिज़बुल मुजाहिद्दीन, अल-उमर मुजाहिदीन, जम्मू एंड कश्मीर इस्लामिक फ्रंट, अल-बद्र, जमात-उल-मुजाहिदीन, अल-क़ायदा, दुख़्तरान-ए-मिल्लत, इण्डियन मुजाहिदीन, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड द लेवेंट, जमात-उल-मुजाहिदीन, इस्लामी स्टेट (आई.एस.आई.एस.), बोको हरम, तालिबान या लश्करे-तोयबा आदि संगठनों के कामों का भी सही वर्गीकरण कर लेना चाहिए.
वे सिरफिरे नहीं हैं, वे बेकार में हिंसा नहीं कर रहे हैं, उनका मकसद साफ है. जैसा भ्रमवश या लोगों को भुलावे में रखने के लिए कह दिया जाता है कि आतंकवादी का कोई मजहब या धर्म नहीं होता, वे उतने ही मुसलमान हैं, इसलिए किसी मुसलमान के लिए गाँधीजी जैसे गैर-मुस्लिमों से अधिक अपने हैं. जिहादी, आतंकवाद के संदर्भ में इस सत्य को ठीक से समझकर ही भारत पर हो रहे राजनीतिक, आध्यात्मिक, अन्य हिंसात्मक, लव जिहाद, लैण्ड जिहाद जैसे अनेक प्रकार के आक्रमणों को समझा जा सकता है.
ईसाइयत और इस्लाम की वैसी मान्यताओं के ठीक विपरीत हिंदू धर्म किसी मतवाद, विश्वास आदि को धर्म का आधार नहीं मानता. इसीलिए हिंदू धर्म उस तरह सामाजिक-राजनीतिक और हिंसक रूप से संगठित धर्म या मत, पन्थ नहीं है, जो अपनी और दूसरों की गिनती आदि का ध्यान रखते हुए धर्म (मजहब) की चिंता कर सके. यह इस की कठिनाई भी है, जो इस पर इस्लाम अथवा ईसायत के संगठित आक्रमणों को अपेक्षाकृत आसान बनाती रही है. अर्थात, हिंदू धर्म की विशेषता एक विशेष परिस्थिति में इस की दुर्बलता भी बनी रही है.
इसी कारण लगातार हिंदू धर्म अरक्षित भी हो रहा है. इसकी इमारत किसी मत-विश्वास पर नहीं, बल्कि सृष्टि मात्र के साथ संबंध पर आधारित है. रिलीजन वाले मतवाद अपने आसपास बाड़ा बनाते हैं. जो उस के भीतर हैं वे ‘अपने’ हैं और बाकी सब ‘गैर’ और प्रायः शत्रु भी माने जाते हैं. लेकिन चूंकि हिंदू धर्म ऐसे बाड़े नहीं बनाता और किसी को गैर नहीं मानता. इसी से वह अकेला और अरक्षित भी रह जाता है. मत-विश्वास पर संगठित नहीं होने के कारण उस के अनुयायी आक्रामक रिलीजनों के प्रहार के सामने असहाय हो जाते हैं. जैसे कश्मीरी हिंदू असहाय मारे गए और अपने ही देश में विस्थापित, शरणार्थी बनने को विवश हुए। यह स्वतंत्र भारत में हुआ, पश्चिम बंगाल, समेत कई राज्यों में निरंतर हो रहा है. आज “पहलगाम” के आतंकवादी हमले में भी वही हुआ है और हिंदुओं को चुन-चुन कर नाम पूछ कर मार दिया गया है.
कहना होगा और यही सत्य भी है; वस्तुत: आज जो भारत में घट रहा है, वह दुनिया पर कब्जे की नीति रखने वाले, संगठित धर्मांतरणकारी रिलीजनों को हिंदू धर्म के बराबर कह कर भारत को पिछले कई सौ साल से निरंतर विखंडन के लिए खुला छोड़ दिये जाने का परिणाम है. क्या हम इसे पहचानने से भी इनकार करते रहेंगे?
संदर्भ-पुस्तक : आध्यात्मिक आक्रमण और घर वापसी (शंकर शरण-विजय कुमार)
वास्तव में जब तक भारत के मदरसों एवं अन्य जगह दीनी तालीम के नाम पर, कभी अल्लाह, कभी रसूल, फिर कभी जिहाद के लिए और नफरत फैलाने वाले पाठ पढ़ाये जाते रहेंगे तब तक भारत में आगे भी गैर मुसलमान (हिंदू एवं अन्य) इसी तरह से मारे जाते रहेंगे. आगे भी इसी तरह पहलगाम का वो मंजर सामने आएगा, जिसमें पहले नाम, फिर धर्म और उसके बाद जबरन कलमा पढ़ने के लिए कहा जाएगा, कपड़े उतरवा कर देखा जाएगा कि सुन्नत हुई है या नहीं. तब जो लोग कलमा नहीं पढ़ पाएंगे या हिचकिचाएंगे, उन्हें वहीं पर गोलियों से भून डाला जाएगा. नहीं तो मुर्शिदाबाद जैसी घटनाएं बार-बार दोहरायी जाएंगी, जिसमें एक विशेष वर्ग के जिहादी-आतंकवादी भीड़ में आएंगे, सबकुछ लूट ले जाएंगे, जो शेष बचेगा उसे आग के हवाले करेंगे, पीटेंगे, मारेंगे, आपको गैर मुसलमान होने की सजा दी जाएगी. मजबूरन आप इसी तरह शेष भारत में भी बार-बार इधर से उधर पलायन करते रहेंगे, जब तक आपके अंत की घोषणा नहीं कर दी जाती है.
– डॉ. मयंक चतुर्वेदी
साभार – हिंदुस्थान समाचार
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