History of Surajkund Fair: हरियाणा में अगर कला और शिल्प की बात करें तो सूरजकुंड मेला (Surajkund Fair) हमारे ध्यान में आता है. यह मेला फरीदाबाद जिले में आयोजित किया जाता है. फरीदाबाद में एक ऐतिहासिक जलाशय बना हुआ है, जिसका नाम सूरजकुंड है. सूरजकुंड की धार्मिक और सांस्कृतिक कहानी से लेकर एक इंटरनेशनल मेला का स्थल बनने तक की बेहद रोमांचक कहानी है. आज इस आर्टिकल में आपको सूरजकुंड मेले का इतिहास, उद्देश्य और महत्व के बारे में विस्तार से बताया जाएगा.
जानिए सूरजकुंड का रोचक इतिहास

इस मेले को सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय शिल्प मेले ( Surajkund International Handicrafts Fair) के नाम से भी जाना जाता है. सूरजकुंड शब्द का अर्थ है ‘सूर्य का कुंड;. सूरजकुंड मेला हर साल हरियाणा के फरीदाबाद में आयोजित किया जाता है.
बता दें, साल 1987 में हरियाणा पर्यटन विभाग के द्वारा इस मेले की शुरूआत की गई थी. सूरजकुंड का नाम 10वीं सदी में तोमर वंश के राजा सूरजपाल द्वारा बनवाए गए एक रंगभूमि सूर्यकुंड से पड़ा है. राजा सूरजपाल, भगवान सूर्य के उपासक थे इसलिए सूरजकंड का निर्माण सूर्य मंदिर के पास ही किया गया था. जिससे उन्हें सूरज को अर्घ देने के लिए आसानी से जल मिल सकें.

सूरजकुंड का यह जलाशय अर्धचंद्राकार (आधा गोला) आकार का है. इसके चारों तरफ पहाड़ियों से पानी एकत्रित होता है. सूरजकुंड का यह इलाका अरावली पहाड़ियों से घिरा हुआ है. बता दें यह जगह पुराने समय में लोगों के बीच योग और तपस्या के लिए प्रसिद्ध थी. समय के साथ-साथ तो यह सूरजकुंड नष्ट होने लगा था, लेकिन सूरजकुंड का जलाशय और उसका महत्व आज भी लोगों के बीच प्रचलित है.
यह स्मारक एकदम अनोखा है, क्योंकि इसे सूर्य भगवान की आराधना करने के लिए बनवाया गया था. सूरजकुंड मेले को शानदार स्मारक की भूमि पर आयोजित करने का मुख्य उद्देश्य भारत की सांस्कृतिक धरोहर की भव्यता और विविधता का जीता-जागता सबूत है.
लेकिन मध्यकाल में मुगलों के शासन के दौरान इस क्षेत्र की धार्मिक और सांस्कृतिक स्थिति में काफी बदलाव आया. जिससे धीरे-धीरे सूरजकुंड का महत्व कम होता गया. एक समय में इस जगह की वैल्यू पूरी तरह से खत्म हो चुकी थी. हालांकि आज भी उस दौर के कुछ अवशेष यहां पर मौजूद है, जो अतीत की गवाही देते हैं.
इस जगह का महत्व लोगों के बीच एक बार फिर से तब बढ़ा, जब हरियाणा सरकार औऱ भारत सरकार ने इस जगह को पर्यटन स्थल के रुप में विकसित किया गया. लोगों के बीच इस मेले की दिवानगी को देखते हुए हरियाणा सरकार ने यहां की सुविधाएं बढ़ाई. जिसे दूर से आने वाले पर्यटकों को रहने के लिए होटल और खाने की सुविधा मिल सकें.
आज भी यह जगह लोगों के बीच सूर्य की उपासना, भारतीय लोक सांस्कृति और प्राचीन जल संरचनाओं का प्रतीक माना जाता है.
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जानें सूरजकुंड मेला आयोजित करने का उद्देश्य

इस मेले को आयोजित करने का मु्ख्य उद्देश्य भारत की लुप्त होती कला और शिल्प को बढ़ावा देना था. समय के साथ-साथ यह मेला देश के सबसे बड़े शिल्प मेलों में से एक बन गया. इस मेले में देश और विदेशों से अलग-अलग जगहों से आए शिल्पकारों, हथकरघा और कारीगर शामिल होकर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं.

इस मेले के माध्यम से शिल्पकारों और कारीगरों को अपनी कला प्रदर्शित करने और प्रोडक्ट्स को बेचने के लिए एक प्लेटफॉर्म दिया जाता है. इसके अलावा यहां पर आप पांरपरिक व्यंजन, लोक नृत्य, खास प्रदर्शनी और संगीत कार्यक्रम (लाइव शो) का आनंद भी उठा सकते हैं.
फरीदाबाद में आयोजित सूरजकुंड मेले को देखने के लिए भारी मात्रा में पर्यटक आते हैं. जिससे हरियाणा में पर्यटन को भी बढ़ावा मिला है.
साल 2013 में मेले को मिला अंतरराष्ट्रीय दर्जा

साल 2013 में सूरजकुंड शिल्प मेले को अंतरराष्ट्रीय मेले का दर्जा दिया गया. जिसके बाद से इस मेले का एक नया कीर्तिमान स्थापित हुआ. साल 2015 में आयोजित सूरजकुंड मेले में अफ्रीका, यूरोप, दक्षिण एशिया समेत कुल 20 देशों ने हिस्सा लिया था.
कैसे पहुंचे सूरजकुंड मेला
दिल्ली से सूरजकुंड मेले की दूरी करीब 25-30 किलोमीटर है. अगर आप अपनी कार या टैक्सी से यहां आने का प्लान करते हैं, तो आपको लगभग 45 मिनट से 1 घंटे तक का समय लगता है. आप बस के माध्यम से भी दिल्ली से सूरजकुंड मेला जा सकते हैं. इसके लिए आपको ISBT कश्मीरी गेट, ISBT आनन्द विहार और मिंटो रोड से बस ले सकते हैं.
यहां पर पार्किंग के चार्ज भी अलग-अलग है. बाइक के लिए 50 रुपये और कार के लिए 100 रुपये चार्ज किए जाते हैं.
मेट्रो से सूरजकुंड मेला जाने के लिए सबसे नजदीकी मेट्रो स्टेशन बदरपुर है. यहां से आप टैक्सी के जरिए मेले तक पहुंच सकते हैं.
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