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Opinion: हम ‘अभिनव’ वर्ष के अवसर पर आप सबके प्रति शुभकामना करते हैं

नववर्ष का मौका है और हम एक-दूसरे को नये साल की बधाई और शुभकामनाएं देने के लिए अलग-अलग तरह के वाक्यों का प्रयोग करते हैं, जैसे- नव/नये वर्ष में आप सबका स्वागत है या नववर्ष की शुभ कामनाएं या फिर नूतन वर्ष की शुभ कामनाएँ देता हूँ; परन्तु इनमें से कोई वाक्य शुद्ध नहीं है.

Akansha Tiwari by Akansha Tiwari
Jan 1, 2025, 12:03 pm GMT+0530
Happy New Year 2025

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Happy New Year 2025: नववर्ष का मौका है और हम एक-दूसरे को नये साल की बधाई और शुभकामनाएं देने के लिए अलग-अलग तरह के वाक्यों का प्रयोग करते हैं, जैसे- नव/नये वर्ष में आप सबका स्वागत है या नववर्ष की शुभ कामनाएं या फिर नूतन वर्ष की शुभ कामनाएँ देता हूँ; परन्तु इनमें से कोई वाक्य शुद्ध नहीं है. आप प्रश्न कर सकते हैं– ऐसा क्यों? हम यहाँ एक-एक गुत्थी सुलझाते हुए, आप सबको शुद्ध और उपयुक्त प्रयोग से अवगत करायेंगे. हमने शीर्षक में ‘नव’ एवं ‘नये वर्ष’ के स्थान पर ‘अभिनव वर्ष’ का प्रयोग किया है, जो हमारे पाठिका-पाठकवर्ग को थोड़ा-बहुत चौंका सकता है; परन्तु जब कोई व्याकरणवेत्ता एवं भाषाविज्ञानी कुछ अलग हटकर प्रयोग करता है तब उसे ग्रहण करने की क्षमता विकसित करनी चाहिए; क्योंकि वह आपकी शब्द-सामर्थ्य में वृद्धि करता जान पड़ता है.

हम यहाँ आप सबको ‘अभिनव’ शब्द के अर्थ और उसके प्रयोग के औचित्य को उत्पत्ति-सहित समझायेंगे. इसके अतिरिक्त नव, नया, नवल, नवीन, नूतन इत्यादिक शब्दों पर भी प्रकाश डालेँगे. आपको चाहिए कि ‘अभिनव’ का मूल शब्द ‘नव’ है, जिसके पूर्व में ‘अभि’ उपसर्ग प्रयुक्त है. यहाँ इस ‘अभि’ उपसर्ग का अर्थ किसी प्रकार की विशेषता अथवा ‘श्रेष्ठता’ का सूचक है. इसप्रकार ‘अभिनव’ का अर्थ हुआ- ‘श्रेष्ठ नया’. ‘श्रेष्ठ’ सर्वोत्तम-अवस्था/सर्वोत्तमावस्था का शब्द है. जो भी विद्यार्थी और अध्यापक ‘सर्वश्रेष्ठ’ का प्रयोग करते हैं, उनका यह प्रयोग अशुद्ध कहलायेगा; क्योकि सामान्यावस्था के शब्द ‘श्रेष्ठ’ के रूप हैं– श्रेष्ठ-श्रेष्ठतर-श्रेष्ठतम. यहाँ ‘श्रेष्ठ नया’ का अर्थ है, ‘सर्वथा नया’.

अब ‘अभिनव’ की उत्पत्ति को समझें. यह संस्कृत-भाषा का शब्द है. जैसा कि हम बता चुके हैं कि इसके मूल शब्द मे ‘अभि’ उपसर्ग युक्त है. ‘स्तुति करना’ के अर्थ में यह ‘नु’ धातु का शब्द है, जिसके अन्त मे ‘अप्’ प्रत्यय जुड़ा हुआ है. इसप्रकार ‘अभिनव’ शब्द की उत्पत्ति होती है. यह शब्दभेद के विचार से विशेषण का शब्द है और लिंगभेद की दृष्टि से पुंल्लिंग-शब्द. ‘अभिनव’ के समानार्थी शब्द हैं– नया, नव, नवीन, नव्य तथा नूतन इत्यादिक, जिनमें तात्त्विक अन्तर होता है. इसका शुद्ध और उपयुक्त वाक्य-प्रयोग है– हमारे पाठिका-पाठकवर्ग का अभिनव वर्ष में स्वागत है. अब आप सोच रहे होंगे कि संज्ञा-शब्द ‘वर्ष’ के साथ विशेषण-शब्द ‘अभिनव’ का प्रयोग क्यों, तो जान लें कि हम यदि यहाँ ‘नव वर्ष’/ ‘नूतन वर्ष’ / ‘नया वर्ष’ का व्यवहार करते हैं तो वह ‘अभिनव’ की तुलना में उतना प्रभावक प्रयोग नहीं दिखेगा; क्योंकि वर्ष 2025 या अन्य कोई वर्ष न कभी आया था और न ही आयेगा.

पहले यह जान लें कि ‘अभिनव’ ऐसा शब्द है, जिसके प्रयोग को लेकर भ्रम और संशय बना रहता है, इसलिए कि इसका समध्वनिमूलक/समोच्चारित शब्द ‘अभिनय’ है; परन्तु अर्थ मे भिन्नता रहती है. यही कारण है कि जब किसी पाण्डुलिपि की टंकित प्रति संशोधकों को पढ़ने के लिए दी जाती है तब अधिकतर संशोधक ‘अभिनव’ शब्द से परिचित न होने के कारण ‘अभिनव’ के अन्त में प्रयुक्त अक्षर ‘व’ के स्थान पर ‘य’ कर देते हैं, जिससे कि ‘अनर्थ’ हो जाता है. ‘अभिनव’ को ‘नितान्त’/’सर्वथा’ (बिलकुल) नया’ कहा जाता है। इसका एक अन्य अर्थ भी है; और वह है, आधुनिक युग की विशेषताओं से युक्त. जैसे- वर्ष 2025 एक अभिनव वर्ष है. ‘अभिनव’ की परिभाषा है– जो आधुनिक युग की विशेषताओं से युक्त हो, उसे ‘अभिनव’ कहते हैं. आधुनिक युग वह है, जिस वर्तमान को व्यक्ति जी रहा होता है. वह अतीत हो जाने के बाद भविष्य में प्रकट नहीं होता.

अब समध्वनिमूलक शब्द ‘अभिनय’ का बोध करें. इस शब्द मे भी ‘अभि’ उपसर्ग है; किन्तु यहाँ धातु मे बदलाव दिखता है। इस शब्द मे ‘ले जाने’ के अर्थ में ‘नी’ धातु का प्रयोग दिखता है, जिसमे ‘अच्’ प्रत्यय जुड़ा हुआ है. ‘अभिनय’ को ‘नाटक का खेल’ कहा जाता है. जब किसी के भाषण वा चेष्टा को कुछ अवधि के लिए धारण किया जाता है तब उसे ‘अभिनय’ कहते हैँ. ‘अभिनय’ के भिन्नार्थी शब्द हैं– नक़्ल (शुद्ध शब्द ‘नक़्ल’ है, जो कि ‘अरबी-भाषा’ का शब्द है.); स्वाँग; खेल आदिक.

‘अभिनय’ का अर्थ है– नाटक इत्यादिक में कलात्मक ढंग से हाव-भाव का प्रदर्शन. हमें आशा है कि आप सब अब नया वर्ष के संदर्भ में ‘अभिनव’ का ही व्यवहार करेंगे.

हम अब आपको इससे सम्बन्धित पर्यायवाची शब्द कहलाने वाले शब्दों की कारण सहित जानकारी देंगे.

आप अब ‘अर्वाचीन’ शब्द को समझें. यह संस्कृत-भाषा से उत्पन्न शब्द है. ‘अर्वाचीन’ का मूल शब्द ‘अर्वाच्’ है, जिसमें ‘ख’ और ‘ईन’ का योग है. इस प्रकार ‘अर्वाचीन’ नामक विशेषण-शब्द की उत्पत्ति होती है. इसका शाब्दिक अर्थ है, जो वर्तमान समय मे बना वा निर्मित हुआ हो. जैसे- अर्वाचीन साहित्य, अर्वाचीन चिकित्सा-पद्धति.

आप सबकी उत्सुकता और जिज्ञासा ‘नया’ शब्द को समझने की होगी, तो यह जान-समझ लें कि ‘नया’ हिन्दी-भाषा का शब्द है, जो कि शब्दभेद के विचार से विशेषण का शब्द और लिंग-दृष्टि से पुंल्लिंग का. इसके समानार्थी शब्द हैं– नवीन, नूतन, हाल का, ताज़ा इत्यादि. यह पुराना के साथ प्रयोग होनेवाला (नया-पुराना) विपरीतार्थक शब्द-युग्म है. आप अब इसकी परिभाषा समझें- जो कुछ ही समय पहले अस्तित्व मे आया हो, वह ‘नया’ है. जैसे– उसने नया घर खरीदा है. इस ‘नया’ शब्द के रूप-प्रयोग को लेकर हमारे विद्यार्थियों और सामान्य जन की कठिनाई अब भी देखी जा सकती है. उदाहरण के लिए– नया से ‘नयी’ और ‘नये’ की रचना होती है, जबकि बड़ी संख्या में ‘नई’ और ‘नए’ के प्रयोगकर्त्ता हैं, जोकि ग़लत है. आप ‘नया’ का एक और उदाहरण देखें– मेरे घर के आस-पास अनेक नये घर निर्मित हो चुके हैं. मूल शब्द ‘नया’ है. इस नया शब्द के अन्त मे ‘या’ है, इसलिए ‘या’ का अस्तित्व समाप्त नहीं होगा; न के साथ ‘यी’ और ‘ये’ का ही प्रयोग होगा, तभी व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध माना जायेगा; क्योंकि ये सारे शब्द स्वरयुक्त हैं. उदाहरण के लिए– नया संसार; नयी दुनिया. इसी ‘नया’ शब्द से ‘नवीनता’/’नूतनत्व’/’नया होने के भाव’ के अर्थ मे संज्ञा एवं पुंल्लिंग-शब्द ‘नयापन’ की रचना होती है. इस विशेषण-शब्द ‘नया’ मे ‘पन’ नामक हिन्दी का प्रत्यय जुड़ा हुआ है.

इसी ‘नया’ से मिलता-जुलता ‘नव’ शब्द है, जोकि संस्कृत-भाषा से उत्पन्न है. शब्दभेद के विचार से ‘नया’ विशेषण-शब्द है तथा लिंगभेद की दृष्टि से पुंल्लिंग. यह ‘स्तुति करना’ के अर्थ में ‘नु’ धातु का शब्द है, जिसके अन्त मे ‘अच्’ प्रत्यय का योग है. इस प्रकार ‘नव’ शब्द का सर्जन होता है. ‘नया’, ‘नवीन’, ‘आधुनिक’ इत्यादिक के अर्थ में ‘नव’ शब्द का प्रयोग होता है. अब यहाँ ‘प्रयोग’ के आधार पर तीन प्रकार के अर्थ निकलते है– पहला, आधुनिक; दूसरा, ‘नौ’ की संख्या तथा तीसरा, नौ प्रकार का. पहले का उदाहरण है– आज समाज मे नवरस की महत्ता है. दूसरे का उदाहरण है– वह 9 जनवरी को पैदा हुआ था. तीसरे का उदाहरण है– अकबर के नवरत्न इतिहास-प्रसिद्ध रहे हैं.

एक अन्य शब्द ‘नवल’ भी है, जो हिन्दी-भाषा का शब्द है. यह शब्द ‘नवीन’ के बहुत समीप है. अब आप ‘नवल’ को समझें– जिसमें कोई नया आकर्षण अथवा नयी विशेषता दिखे, वह ‘नवल’ है. ‘नवल’ का एक अन्य अर्थ ‘उज्ज्वल’ (‘उज्जवल’ अशुद्ध है) भी है.

जब ‘नवीन’ शब्द का संदर्भ आ ही गया तब हम इसका भी बोध कर लें. ‘नवीन’ का मूल शब्द ‘नव’ है, जिसमें ‘ख’ का योग है तथा ‘ईन’ का भी. इस प्रकार व्याकरणीय नियम के अनुसार, ‘नवीन’ शब्द का सर्जन (‘सृजन’ अशुद्ध है) होता है, जोकि शब्दभेद की दृष्टि से विशेषण-शब्द है और लिंग-विचार से पुंल्लिंग-शब्द. क्या आपको मालूम है– ‘नवीन’ का स्त्रीलिंग-शब्द ‘नवीना’ है. इसी में ‘प्र’ उपसर्ग को युक्तकर ‘प्रवीना’ शब्द गठित होता है, जिसका पुंल्लिंग-शब्द ‘प्रवीन’ है. अब ‘नवीन’ का अर्थ समझते हैं– जो अभी का अथवा थोड़े समय का हो. जैसे– उसने नवीन आदर्श उपस्थित किया है. इसके समानार्थी शब्द हैं– नया, नूतन, हाल का इत्यादिक. इसके भिन्नार्थक शब्द हैं– विचित्र; अपूर्व; नवयुवक आदिक. ‘नवीन’ का विपर्याय (विपरीत/विलोम) शब्द ‘प्राचीन’ है.

हम अब ‘नव्य’ शब्द को समझते हैं, जिसका प्रयोग प्राय: शिक्षा एवं साहित्य क्षेत्रों में किया जाता है. पहले आप इसकी उत्पत्ति को समझें. ‘नव्य’ का मूल शब्द ‘नव’ है, जिसमे ‘यत्’ प्रत्यय के योग से ‘नवीन’ के अर्थ मे विशेषण-शब्द ‘नव्य’ की उत्पत्ति होती है, जो कि पुंल्लिंग का शब्द है. इसी नवीन को ‘नव्य’ कहते हैं. ‘नव्य’ का एक अन्य अर्थ ‘स्तुति करने-योग्य’ भी है. एक अन्य विशेषण ‘नवेला’ का भी प्रयोग ‘नव्य’ के अर्थ मे किया जाता है. हिन्दी-शब्द ‘नवेला’ की उत्पत्ति ‘नव’ शब्द से होती है. इस ‘नवेला’ नामक पुंल्लिंग-शब्द का स्त्रीलिंग ‘नवेली’ है. ‘तरुण’ और ‘जवान’ को भी ‘नवेला’ कहा जाता है.

नया वर्ष के लिए ‘नूतन’ का भी प्रयोग होता है. हम पहले ‘नूतन’ शब्द की व्युत्पत्ति को समझेँगे, जोकि संस्कृत-भाषा से उत्पन्न शब्द है. इसका मूल शब्द ‘नव’ है, जिसमे ‘तनप्’ प्रत्यय का योग है, फिर व्याकरण के नियम ‘नू-आदेश’ से ‘नूतन’ की व्युत्पत्ति होती है. ‘नूतन’ शब्द ‘नवीन’ के अर्थ से मिलता-जुलता है. इसके अतिरिक्त ‘नूतन’ का प्रयोग ‘अनूठा’ के अर्थ मे भी किया जाता है, जो दृश्य-वैचित्र्य को प्रकट करता है. इसी शब्द से भाववाचक संज्ञा नूतनता/ नयापन/नूतन होने के भाव/नूतनत्व का सर्जन होता है.

हमने यहाँ यह समझ लिया कि उपर्युक्त (‘उपरोक्त’ अशुद्ध है) शब्दों के वास्तविक अर्थ क्या हैं एवं उनका प्रयोग कहाँ-कहाँ होता है.

हम अब ‘वर्ष’ शब्द को समझेंगे. यह एक ऐसा शब्द है, जिसकी विविधता देखते ही बनती है. प्राय: सभी लोग इतना ही जानते हैं कि वर्ष का अर्थ ‘साल’ होता है, जिसे बोल-चाल मे लोग ‘बरस’ भी कहते हैं वहीं जल बरसने के सन्दर्भ में भी ‘बरस’ का प्रयोग होता है. जैसा कि कबीरदास ने कहा है, “बरसै कम्बल भीजै पानी.” यहाँ यह ध्यान करना होगा कि जब ‘बरस’ का प्रयोग ‘संज्ञा’ के रूप मे होगा तब उसका अर्थ ‘वर्ष’ कहलायेगा और जब ‘क्रिया’ के रूप में होगा तब जल बरसने के अर्थ में होगा तथा ‘अत्यधिक क्रोध’ की अभिव्यक्ति के रूप मे भी. जैसे– पानी बरस रहा है. वह नौकर पर बरस पड़ा.

आपको ज्ञात है– 365 दिन 5 घण्टे 48 मिनट तथा 46 सेकण्ड का समय ‘वर्ष’ कहलाता है. साल के अर्थ में शुद्ध शब्द ‘वर्ष’ ही है. अब वर्ष के नाना रूपों और अर्थों को समझें. वर्ष को ‘वर्षा’ भी कहा जाता है. इतना ही नहीं, ‘बादल’ के अर्थ में भी ‘वर्षा’ का प्रयोग किया जाता है. किसी विशिष्ट चक्र को पूर्ण करने के लिए जितना समय लगता है, उसे ‘वर्ष’ कहते हैं. उदाहरण के लिए– वर्षगाँठ, नाक्षत्र वर्ष, चान्द्र वर्ष, वित्तवर्ष इत्यादिक. जैसे ही ‘भारत’ शब्द के साथ ‘वर्ष’ जुड़ जाता है तब उस वर्ष का अर्थ ‘पृथ्वी का खण्ड’ और ‘स्थान’ हो जाता है.

यहाँ यह भी जान लें– ‘वर्ष’ समुच्चयबोधक शब्द है. 12 मास का एक वर्ष होता है; इसमें बारह मास जुड़े हुए हैं, इसलिए कोई ‘वर्ष’ का बहुवचन ‘वर्षों’ कहता वा लिखता हो तो वह अशुद्ध कहलायेगा. आप ‘सालों ‘ लिख सकते हैं.

हमने ‘अभिनव’ एवं उससे जुड़े कई शब्दों का संज्ञान कर लिया है (‘संज्ञान ले लिया है’ अशुद्ध है), साथ ही ‘वर्ष’ शब्द को भी समझ लिया है. अब अपने शीर्षक मे प्रयुक्त ‘शुभकामना’ करते हैं ‘ का बोध करेंगे. अधिकतर जन लिखते हैं– नये वर्ष पर शुभ कामनाएं/ढेर सारी/अनन्त शुभ कामनाएं देता हूँ. हम पहले ‘शुभकामना’/’शुभ-कामना’ शब्दों की उत्पत्ति समझेंगे. ‘शुभकामना’ शब्द संस्कृत-भाषा से उत्पन्न हुआ है. इसमे दो शब्द हैं– ‘शुभ’ और ‘कामना’. शब्दभेद के विचार से ‘शुभ’ विशेषण का शब्द है. यह शब्द ‘शुभ्’ धातु का है, जिसका अर्थ ‘दीप्ति करना’ है. इस धातु में ‘क’ के योग से ‘शुभ’ की प्राप्ति होती है. इसके समानार्थी शब्द हैं– कुशल, कल्याण, मंगल, ख़ैर इत्यादिक. ‘शुभ’ के भिन्नार्थी शब्द है– सुन्दर; चमकीला; पवित्र आदिक. अब दूसरे शब्द ‘कामना’ को समझते हैं.

‘कामना’ शब्दभेद के विचार से संज्ञा का शब्द है तथा लिंग-दृष्टि से स्त्रीलिंग-शब्द. ‘कामना’ की रचना ‘कामना करना’ के अर्थ में ‘कम्’ धातु से होती है, जिसमे ‘युच्’ और ‘टाप्’ प्रत्यय जुड़ जाते हैँ और ‘कामना’ का उद्भव हो जाता है. इसके समानार्थी शब्द हैं– इच्छा, अभीप्सा, मनोरथ, चाह इत्यादिक. ‘कामना’ का एक अन्य अर्थ ‘वासना’ भी है. इस प्रकार ‘शुभकामना’ का शाब्दिक अर्थ ‘कल्याण की कामना’ है.

हम ‘मुक्त मीडिया’ (सोशल मीडिया) में देखते हैं कि अधिकतर लोग उपर्युक्त प्रकार की शब्दावली का ही प्रयोग करते हैं, जिसका मुख्य कारण होता है कि वे कहीं से शुभकामना व्यक्त करनेवाली सामग्री पा जाते हैं और उनमे अंकित शब्दावली पर बिना विचार किये एक-दूसरे के पास सम्प्रेषित कर देते हैं. उनकी वैसी शुभकामना एकसिरे से अशुद्ध और अनुपयुक्त रहती है. इस प्रकार शब्दसंदूषण परिव्याप्त हो जाता है.

यहाँ सर्वाधिक विवादास्पद विषय यह है कि लोग ‘नव/नया/नूतन वर्ष की’ का प्रयोग करते हैं. ‘क्रिस्मस की’, ‘होली की’, ‘दीपावली की’, ‘ईद की’, ‘दशहरा की’ इत्यादिक त्योहारों/त्यौहारों के साथ ‘की’ लगाकर शुभकामना प्रकट करते हैं. यह तो ऐसे ही हो गया, जैसे किसी ने कहा– ‘पिता की’ शुभकामना. वैसे लोग भूल जाते हैँ कि वे किसी अवसर-विशेष पर अपनी मंगलकामना/मंगल-कामना व्यक्त कर रहे होते हैं.

व्याकरण की दृष्टि से उक्त प्रकार की वाक्यरचना अशुद्ध और अनुपयुक्त तो है ही, अत्यन्त हास्यास्पद भी है. उसी आपत्तिजनक वाक्य में जब हम ‘हार्दिक शुभ कामना/शुभ कामनाएं’ पर विचार करते हैं तब ज्ञात होता है कि जब कोई किसी के प्रति शुभकामना प्रकट करता है तब वह ‘हृदय का ही उद्गार’ होता है, अत: ‘हार्दिक’ (हृदय-सम्बन्धी/हृदय से निकला) शब्द का प्रयोग अनुपयुक्त है. उक्त अशुद्ध वाक्य मे ‘शुभ कामना’ का अलग-अलग प्रयोग है, जो कि अर्थहीन है; क्योंकि शुद्ध प्रयोग ‘शुभकामना’/’शुभ-कामना’ है, जिसका अर्थ है, ‘मंगल ‘की’ कामना’. यहाँ यह ‘षष्ठी तत्पुरुष समास’ का उदाहरण है और ‘सम्बन्धबोधक कारक’ का भी. हिन्दी में ‘शुभकामना’, ‘आशीर्वाद’ एवं अन्य कामनाप्रधान शब्द बहुवचन मे प्रयुक्त नहीं होते. हम इच्छा आकांक्षा, चाह, भोग इत्यादिक ‘देते’ नहीं, अपितु ‘करते’ हैं. जिस प्रकार ‘उन्होंने आशीर्वादें दिये’ का प्रयोग अशुद्ध है उसी प्रकार ‘शुभ कामनाएं’ अशुद्ध है और अनुपयुक्त भी; क्योंकि किसी भाव/रस का अलग से बहुवचन नही बनाया जाता; अन्तर्निहित रहता है.

‘ढेर सारी शुभकामनाएं’ में ‘ढेर’ शब्द को समझें– ‘सिक्कों का ढेर’, ‘आम का ढेर’, ‘कूड़े का ढेर’, जो एक प्रकार का समूह है. ऐसे में, जो ‘शुभकामना’ ‘अनुभूति’ का विषय है, उसके लिए ‘ढेर सारी’ का प्रयोग नितान्त हास्यास्पद है. हम किसी प्रकार के ‘भाव की ढेर’ नहीं कह सकते. उसी तरह से ‘अनन्त’ और ‘अनन्त अनन्त’, ‘बहुत’ और ‘बहुत बहुत’ के प्रयोग भी निरर्थक हैं.

आप किसी के लिए ‘अवसर-विशेष’ (होली, जन्मदिनांक आदिक) पर शुभकामना प्रकट कर रहे होते हैं.

नीचे शुभकामना व्यक्त करनेवाले शुद्ध वाक्य दिये गये हैं, ग्रहण करें–

(1) आपको/आपके लिए अभिनव वर्ष के अवसर पर शुभकामना है.

(2) आपको/आपके लिए होलिकोत्सव पर शुभकामना है.

(3) होली के अवसर पर शुभकामना/शुभ-कामना व्यक्त करता हूँ.

(4) रंगपर्व पर आपके स्वस्थ और सुरक्षित जीवन की कामना है.

(5) आपके जन्मदिनांक के अवसर पर आपकी बौद्धिक/आत्मिक/सारस्वत समृद्धि की कामना है.

इस प्रकार से व्यक्त की गयी सद्कामना ही भाषा की दृष्टि से शुद्ध और उपयुक्त मानी जायेगी.

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

(लेखक वैयाकरण एवं भाषाविज्ञानी हैं)

साभार – हिंदुस्थान समाचार

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