‘Baby John’ Film Review: यूट्यूब पर हिंदी में डब करके उपलब्ध किसी फिल्म का रीमेक बनाना और फिर उसका घटिया रीमेक बनाना बहादुरी का काम है. फिल्म ‘बेबी जॉन’ के साथ भी ऐसा ही हुआ. यह फिल्म 2016 की तमिल फिल्म थेरी की रीमेक है. हालांकि, यह हिंदी संस्करण थोड़ा गड़बड़ है. इसमें वरुण जॉन नहीं बल्कि एक बच्चे के किरदार में नजर आ रहे हैं.
फिल्म में वरुण धवन का एक डायलॉग है- ‘मेरे जैसे कई लोग आए होंगे लेकिन मैं यहां पहली बार आया हूं. ‘दरअसल बिल्कुल नहीं, पहले थलापति विजय इस रोल में नजर आ चुके हैं और स्क्रीन पर धमाल मचा चुके हैं.
कहानी
इस फिल्म की कहानी में कोई बदलाव नहीं किया गया है. क्योंकि असली फिल्म यूट्यूब पर है और पूरी कहानी विकिपीडिया पर लिखी गई है. वरुण धवन एक डीसीपी हैं जो एक बड़े रसूखदार के बेटे की हत्या कर देते हैं. क्योंकि उसने एक लड़की के साथ दुष्कर्म कर उसकी हत्या कर दी थी. तभी वह शख्स जैकी श्रॉफ वरुण की पत्नी और मां को मार देता है. उनका मानना है कि हमले में वरुण और उनकी बेटी भी मारे गए. लेकिन, बाद में वरुण ने पुलिस की नौकरी छोड़ दी और अपनी बेटी के साथ कहीं और सामान्य जिंदगी जीने लगे. लेकिन, वह शख्स वरुण की जिंदगी में वापस आता है और आगे क्या होता है यही इस फिल्म की कहानी है.
फिल्म कैसी है?
इस फिल्म की मूल फिल्म से तुलना उचित नहीं है. निर्माताओं ने कहा था कि यह मूल फिल्म का रूपांतरण है, रीमेक नहीं. हालांकि, कई दृश्य मूल फिल्म की हूबहू नकल हैं. फिल्म का एक्शन पुराना लगता है, अब हिंसक फिल्मों के पैमाने बदल गए हैं. हाल ही में मलयालम फिल्म मार्को रिलीज हुई है और इसमें अलग लेवल का एक्शन दिखाया गया है. एक्शन भी घिसा-पिटा लगता है, सलमान और वरुण के बीच के सीन नकली लगते हैं.
वरुण, विजय से बेहतर नहीं दिखते. प्रत्येक दृश्य को देखते समय मूल फिल्म का एक दृश्य आपकी आंखों के सामने आ जाता है. हालांकि, यह फिल्म आपको लुभाती नहीं है. कुछ जगहों पर फिल्म इतनी बचकानी लगती है कि हंसी आती है. बीच-बीच में आने वाले खराब गाने पहले से ही परेशान दर्शकों की हताशा को और बढ़ा देते हैं. कुल मिलाकर इस फिल्म को देखने के बाद आपको ऐसा लग सकता है कि अगर आप असली फिल्म देखते तो बेहतर होता.
अभिनय
फिल्म में वरुण धवन अपने किरदार ‘जॉन’ के साथ न्याय नहीं कर पाए. वरुण एक अच्छे अभिनेता और मेहनती अभिनेता हैं. पिछली वेब सीरीज ‘ सिटाडेल हनी बन्नी’ में उनका काम अच्छा था. लेकिन, वह राज और डीके ही थे जिन्होंने उनसे काम करवाया. हालांकि, निर्देशक यहां अपने किरदार को निखार नहीं पाए. यह फिल्म ‘सिंघम’, ‘सिम्बा’ और ‘सूर्यवंशी’ का मिक्स लुक लग रही है. वे जानते थे कि उसकी तुलना विजय से की जाएगी और वरुण विजय की तुलना में फीका पड़ जाएंगे.
वामिका गब्बी की डायलॉग डिलीवरी ही अजीब लगती है, वह दर्शकों को बिल्कुल भी प्रभावित नहीं कर पाती हैं. कीर्ति सुरेश अपने किरदार के साथ न्याय करती हैं. खलनायक के रूप में जैकी श्रॉफ अच्छे दिखते हैं पर एक्टिंग कुछ खास कमल नहीं दिखा पाए. वरुण की बेटी का किरदार निभाने वाली जारा जियाना अच्छी एक्टिंग की हैं. वहीं राजपाल यादव ने भी अच्छी काम किया है.
निर्देशन
इस फिल्म का मूल निर्देशन एटली ने ही किया है. इस समय, कैलिस को बागडोर सौंपी गई. उन्होंने दावा किया कि वह वरुण को एक ऐसे अवतार में पेश करेंगे जो एक अद्भुत एक्शन अवतार होगा और जिसे दर्शक कभी नहीं भूलेंगे. लेकिन, अब लगता है कि दर्शक और वरुण दोनों ही इस किरदार को भूलना चाहेंगे. फिल्म को तीन लेखकों एटली, कैलिस और सुमित अरोड़ा ने लिखा है.
संगीत
गीत-संगीत इस खराब फिल्म को और भी वाहियात बना देते हैं. गाने न केवल खराब हैं, बल्कि वे दर्शकों के धैर्य की भी परीक्षा लेते हैं. कुल मिलाकर, यह फिल्म निराशाजनक अनुभव देती है.
साभार – हिंदुस्थान समाचार
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