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Ahoi Ashtami 2024 Opinion: सन्तान की दीर्घायु की कामना का पर्व है अहोई अष्टमी

अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन किया जाता है. विशेष तौर पर यह पर्व माताओं द्वारा अपनी सन्तान की लम्बी आयु व स्वास्थ्य कामना के लिए किया जाता है.

Akansha Tiwari by Akansha Tiwari
Oct 24, 2024, 11:06 am GMT+0530
Ahoi Ashtami 2024

Ahoi Ashtami 2024

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Ahoi Ashtami 2024: अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन किया जाता है. विशेष तौर पर यह पर्व माताओं द्वारा अपनी सन्तान की लम्बी आयु व स्वास्थ्य कामना के लिए किया जाता है. पुत्रवती महिलाओं के लिए यह व्रत अत्यन्त महत्वपूर्ण है. जिन माता-पिता को अपने सन्तान की ओर से स्वास्थ्य व आयु की दृष्टि से चिंता बनी रहती है, इस पर्व पर माता द्वारा समुचित व्रत व पूजा करने का विशेष लाभ प्राप्त होता है. सन्तान स्वस्थ होकर दीर्घायु को प्राप्त करती हैं.

जिन दम्पतियों के पुत्र नहीं बल्कि पुत्री सन्तान है वे भी अहोई माता की पूजा कर सकती हैं. सन्तान की कामना वाली महिलाएं भी यह व्रत रखकर अहोई माता से सन्तान प्राप्ति की प्रार्थना कर सकती हैं लेकिन यह भी नियम है कि एक साल व्रत लेने के बाद आजीवन यह व्रत टूटना नहीं चाहिए. पहले धारणा थी कि सिर्फ सपूतों के लिए ही व्रत रखा जाता है. ऐसा नहीं है. आज के बदलते दौर में जब पुत्री भी माता-पिता के लिए बराबर की मान्यता साकार करती हैं तो पुत्रियों के सुख सौभाग्य के लिए भी अहोई माता कृपालु होती हैं.

अहोई अष्‍टमी का व्रत करवा चौथ के ठीक चार दिन बाद आता है. करवा चौथ पर महिलाएं पति की दीर्घायु की कामना के लिए व्रत करती हैं तो अहोई अष्‍टमी पर संतान की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत करती है. रात में तारों को अर्घ्‍य देने के बाद व्रत का पारण करती हैं और फिर जल ग्रहण करती हैं. यह व्रत अहोई मैय्या को समर्पित होता है. अहोई अष्टमी का पर्व दीपावली के आरम्भ होने की सूचना देता है.

कहा जाता है कि प्राचीन काल में एक साहूकार रहा करता था. साहूकार की पत्नी चंद्रिका बहुत गुणवती थी. साहूकार की बहुत सन्ताने थीं। वह अपने परिवार के साथ सुख से जीवन यापन कर रहा होता है. एक बार साहूकार की स्त्री घर की लीपा-पोती हेतु मिट्टी लेने खदान में जाती है और कुदाल से मिट्टी खोदने लगती है, परन्तु उसी जगह एक सेह की मांद होती है और अचानक उस स्त्री के हाथ से कुदाल सेह के बच्चे को लग जाती है जिससे सेह के बच्चे की मृत्यु हो जाती है.

इस घटना से साहूकार की पत्नी को बहुत दुख होता है. मन में पश्चाताप का भाव लिए वह घर लौट जाती है। परन्तु कुछ दिनों बाद उसकी संतानें एक-एक करके मरने लगती हैं. अपने बच्चों की अकाल मृत्यु से पति-पत्नी दुखी रहने लगते हैं. बच्चों की शोक सभा में साहूकार की पत्नी विलाप करती हुई उन्हें बताती है कि उसने जान-बूझकर कभी कोई पाप नहीं किया लेकिन एक बार अनजाने में उससे एक सेह के बच्चे की हत्या हो गई थी.

यह सुनकर औरतें साहूकार की पत्नी को दिलासा देती हैं और उसे अष्टमी माता की पूजा करने को कहती हैं, साहूकार की पत्नी दीवार पर अहोई माता और सेह के बच्चों का चित्र बना कर माता की पूजा करती है और अहोई मां से अपने अपराध की क्षमा-याचना करती है. तब मां प्रसन्न हो उसकी होने वाली सन्तानों को दीर्घ आयु का वरदान देती हैं. तभी से अहोई व्रत की परम्परा प्रचलित हो गई.

अहोई माता के चित्रांकन में ज्यादातर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है. उसी के पास सेह तथा उसके बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं. उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अहोई माता का स्वरूप वहां की स्थानीय परम्परा के अनुसार बनता है. सम्पन्न घर की महिलाएं चांदी की अहोई बनवाती हैं. जमीन पर गोबर से लीपकर कलश की स्थापना होती है. अहोई माता की पूजा करके उन्हें दूध चावल का भोग लगाया जाता है. तत्पश्चात एक पाटे पर जल से भरा लोटा रखकर कथा सुनी जाती है. अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाते हैं तथा साथ ही सेह और उसके बच्चों का चित्र भी बनाते हैं.

सन्ध्या में आरती के समय के उपरान्त मां का पूजन करने के बाद अहोई माता की कथा सुनते हैं. पूजा के बाद सास-ससुर के पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त कर बाहर आकाश में दीपक अर्पित करके तारों की पूजा कर जल चढ़ाते हैं. तारों को करवा से अर्घ्य भी दिया जाता है. इस दौरान अहोई माता का जाप भी करते हैं. अष्टमी का चांद देखने के उपरान्त व्रत पूजन पूरा हो जाता है और इसके पश्चात व्रती को जल ग्रहण करके व्रत का समापन करना होता है. पूजा के उपरान्त इस दिन लाल धागे की रक्षा सूत्र बांधकर पुत्र अथवा पुत्री को दीर्घायु का आशीर्वाद देना चाहिए.

अहोई माता पर एक दन्तकथा के अनुसार, प्राचीन काल में दतिया नगर में चंद्रभान नाम का एक आदमी रहता था. उसकी बहुत सी सन्तानें थीं, परन्तु उसकी सन्ताने अल्प आयु में ही अकाल मृत्यु को प्राप्त होने लगती हैं. अपने बच्चों की अकाल मृत्यु से पति-पत्नी दुखी रहने लगे थे. कालान्तर तक कोई सन्तान न होने के कारण वह पति-पत्नी अपनी धन दौलत का त्याग करके वन की ओर चले जाते हैं और बद्रिकाश्रम के समीप बने जल के कुंड के पास पहुंचते हैं तथा वहीं अपने प्राणों का त्याग करने के लिए अन्न-जल का त्याग करके उपवास पर बैठ जाते हैं.

इस तरह छह दिन बीत जाते हैं तब सातवें दिन एक आकाशवाणी होती है कि हे साहूकार. तुम्हें यह दुख तुम्हारे पूर्व जन्म के पाप से मिल रह है. अत: इन पापों से मुक्ति के लिए तुम्हें अहोई अष्टमी के दिन व्रत का पालन करके अहोई माता की पूजा अर्चना करनी चाहिए. जिससे प्रसन्न हो अहोई माता तुम्हें पुत्र प्राप्ति के साथ-साथ उसकी दीर्घ आयु का वरदान देंगी. इस प्रकार दोनों पति-पत्नी अहोई अष्टमी के दिन व्रत करते हैं और अपने पापों की क्षमा मांगते हैं. अहोई मां प्रसन्न हो उन्हें संतान की दीर्घायु का वरदान देती हैं.

वर्तमान समय में भी माताओं द्वारा अपनी सन्तान की इष्टकामना के लिए अहोई माता का व्रत रखा जाता है और सायंकाल अहोई मता की पूजा की जाती है तो निश्चित रूप से इसका शुभफल उनको मिलता ही है और सन्तान चाहे पुत्र हो या पुत्री उसको भी निष्कंटक जीवन का सुख मिलता है. अहोई व्रत के दिन प्रात उठकर स्नान करें और पूजा पाठ करके अपनी संतान की दीर्घायु एवं सुखमय जीवन हेतु कामना करते हुए मैं अहोई माता का व्रत कर रही हूं ऐसा संकल्प करें. अहोई माता मेरी संतान को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखे. अनहोनी को होनी बनाने वाली माता देवी पार्वती हैं इसलिए माता पार्वती की पूजा करें. अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएं और साथ ही सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं. सन्ध्या काल में इन चित्रों की पूजा करें.

रमेश सर्राफ धमोरा

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं.)

साभार – हिंदुस्थान समाचार

Tags: Ahoi AshtamiAhoi Ashtami 2024Opinion
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