Dusshera 2024: हर साल विजयादशमी में रावण वध देखते हैं तो मन में आस होती है कि समाज में घूमने वाले रावण कम होंगे. लेकिन ये तो रक्तबीज के समान है. रावणों की संख्या में बेहिसाब इजाफा हो रहा है. एक कटे सौ पैदा हो रहे हैं. वो तो फिर भी विद्वान था, नीति पालक था, भगवान शिव का उपासक था. सीता का हरण किया, लेकिन बुरी नजर से नहीं देखा, विवाह का निवेदन किया लेकिन जबरन विवाह नहीं किया. एक गलती की जिसकी उसे सजा भुगतनी पड़ी, मगर आज के दौर में हजारों अपराध करने के बाद भी रावण सरेआम सड़कों पर घूम रहे हैं, कोई लाज नहीं, शर्म नहीं.
दशहरा पर रावण दहन ट्रेंड बन गया है. लोग इससे सबक नहीं लेते. रावण दहन की संख्या बढ़ाने से फायदा नहीं होगा. लोग इसे मनोरंजन के साधन के तौर पर लेने लगे हैं. पिछले वर्ष के मुकाबले हर बरस देश के विभिन्न हिस्से में तीन गुणा अधिक रावण के पुतले फूंके जाते हैं. इसके बावजूद अपराध में कोई कमी आएगी, इसके बढ़ते आंकड़े देखकर तो ऐसा नहीं लगता. हमें अपने धार्मिक ग्रंथों से प्रेरणा लेनी चाहिए. रावण दहन के साथ दुर्गुणों को त्यागना चाहिए. रावण दहन दिखाने का अर्थ बुराइयों का अंत दिखाना है. हमें पुतलों की बजाय बुराइयों को छोड़ने का संकल्प लेना चाहिए. समाज में अपराध, बुराई के रावण लगातार बढ़ रहे हैं. इसमें रिश्तों का खून सबसे अधिक हो रहा है. मां, बाप, भाई, बहन, बच्चों तक की हत्या की जा रही है, दुष्कर्म के मामले भी लगातार बढ़ते जा रहे हैं.
रावण सर्वज्ञानी था, उसे हर चीज का अहसास होता था क्योंकि वह तंत्र विद्या का ज्ञाता था. रावण ने सिर्फ अपनी शक्ति एवं स्वयं को सर्वश्रेष्ठ साबित करने में सीता का अपहरण किया. अपनी छाया तक उस पर नहीं पड़ने दी. आज का रावण धूर्त है, जाहिल है, व्यभिचारी है, दहेज के लिए पत्नी को जलाता है, शादी की नीयत से महिलाओं का अपहरण करता है. इस कुकृत्य में असफल हुआ तो बलात्कार भी. धर्म के नाम पर कत्लेआम करता है, लड़ने की शक्ति उसमें नहीं है, सो दूसरे के कंधे पर बंदूक रखकर चलाता है. नीतियों से उसका कोई वास्ता नहीं है, पराई नारी के प्रति उसके मन में कोई श्रद्धा नहीं. आज का रावण उस रावण से क्रूर है, खतरनाक है, सर्वव्यापी है. वह महलों में रहता है. गली-कूचों में रहता है. गांव में भी है. शहर में भी है. वह गंवार भी है, पढ़ा-लिखा भी है. लेकिन राम नहीं हैं कि उसकी गर्दन मरोड़ी जा सके. बस एक आस ही तो है कि समाज से रावणपन चला जाएगा खुद-ब-खुद एक दिन.
रावण की मृत्यु का मुख्य कारण वासना थी, जो उसके अंतिम विनाश का कारण था. इतिहास इस बात का गवाह है कि कामुक पुरुष (और महिलाएं भी) कभी सुखी नहीं रहे. विपरीत लिंग के प्रति उनके जुनून के कारण कई शक्तिशाली राजाओं ने अपना राज्य खो दिया. रावण ने सीता की शारीरिक सुंदरता के बारे में सुना, फिर उस पर विचार करना शुरू कर दिया और अंततः उस गलत इच्छा पर कार्य करना शुरू कर दिया. अंत में वासना ही रावण की मृत्यु का मुख्य कारण बनी. रावण महाज्ञानी था लेकिन अहंकार हो जाने के कारण उसका सर्वनाश हो गया, रावण परम शिवभक्त भी था, तपस्या के बल पर उसने कई शक्तियां अर्जित की थीं. रावण की तरह उसके अन्य भाई और पुत्र भी बलशाली थे. लेकिन आचरण अच्छे न होने के कारण उनके अत्याचार लगातार बढ़ते जा रहे थे जिसके बाद भगवान ने राम के रूप में अवतार लिया और रावण का वध किया. वाल्मीकि रामायण में रावण को अधर्मी बताया गया है क्योंकि रावण ज्ञानी होने के बाद भी किसी भी धर्म का पालन नहीं करता था. यही उसका सबसे बड़ा अवगुण था. जब युद्ध में रावण की मृत्यु हो जाती है तो मंदोदरी विलाप करते हुए कहती हैं, अनेक यज्ञों का विलोप करने वाले, धर्म व्यवस्थाओं को तोड़ने वाले, देव-असुर और मनुष्यों की कन्याओं का जहां-तहां से हरण करने वाले, आज तू अपने इन पाप कर्मों के कारण ही वध को प्राप्त हुआ है.
रावण के जीवन से हमें जो सीख लेनी चाहिए वह यह है कि हमें कभी भी अपने हृदय में वासना को पनपने नहीं देना चाहिए. किसी भी प्रकार की वासना के लिए हमें लगातार अपने हृदय की जांच करनी चाहिए. अगर है तो उसे कली में डुबो दें. क्योंकि अगर अनियंत्रित छोड़ दिया गया तो यह हमें पूरी तरह से नष्ट कर देगा. सब कुछ चिंतन से शुरू होता है. आज के लोग इतने शिक्षित और समझदार हो गये है कि सबको पता है बुराई और अच्छाई क्या है. लेकिन फिर भी दुनिया में बुराइयाँ बढ़ती ही जा रही है. जो सन्देश देने के लिए रावण दहन की प्रथा शुरू की गयी थी, वो संदेश तो आज कोई लेना ही नहीं चाहता.
प्रियंका सौरभ
(लेखिका, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
साभार – हिंदुस्थान समाचार
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