National Space Day 2024: भारत आज 23 अगस्त को पहला राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस (First National Space Day) मना रहा है. आज के दिन ही चंद्रयान-3 मिशन की चंद्रमा की सतह पर सफल लैंडिंग हुई थी. उसी की याद में आज पूरा देश पहली वर्षगांठ मना रहा है. राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस को एक त्यौहार के रूप में मनाया जा रहा है.
23 अगस्त 2023 को चंद्रमा पर विक्रम लैंडर ने पहला कदम रखा था. भारतीय अंतरिक्ष मिशन हमारे लिए गर्व की बात है, ऐसा इसलिए क्योंकि विक्रम में चंद्रमा के जिस दक्षिणी हिस्से में सॉफ्ट लैंडिंग की थी वहां किसी ने भी इससे पहले लैंडिंग नहीं की थी. भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए यह मील का पत्थर साबित होने वाला प्रोजेक्ट रहा. पहला राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस एक खास के साथ मनाया जा रहा है. इस वर्ष की थीम है- ‘चंद्रमा को छूते हुए जीवन को छूना: भारत की अंतरिक्ष गाथा (Touching Lives while Touching the Moon: India’s Space Saga).
अंतरिक्ष की दुनिया में ISRO कहां तक पहुंचा?
इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) आज भारत का गौरव है. ISRO का सफर 62 वर्ष पूर्व साइकिल और बैलगाड़ी पर रॉकेट के पुर्जे ढोने से शुरू हुआ था. और आज क्रायोजेनिक इंजन और गगनयान तक पहुंच गया है. इसरो आज अंतरिक्ष तकनीक के वैश्विक बाजार में अपना पैर पसारता जा रहा है. आज विभिन्न देशों के कुल 424 उपग्रह प्रक्षेपित है, जो इसरो द्वारा प्रक्षेपित विदेशी उपग्रहों में अमेरिका के 231, यूनाइटेड किंगडम के 86 और सिंगापुर के 20 हैं. ये तीनों देश इस क्षेत्र में भारत के साथ हुए अंतरराष्ट्रीय सहयोग समझौते के लाभार्थी भी हैं.
ISRO ने पहले क्रायोजेनिक इंजन बनाने में सफलता हासिल की थी. इसके बाद शक्तिशाली लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (एलवीएम-3) बनाया, जिसका चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 अभियानों में सफलतापूर्वक उपयोग किया गया. ISRO अब पेलोड क्षमता बढ़ाने के लिए लिक्विड आक्सीजन केरोसिन प्रणोदक संयोजन पर काम करने वाले 2,000 किलोन्यूटन थ्रस्ट सेमी-क्रायोजेनिक इंजन को बनाने का काम कर रहा है.
ISRO तीन चंद्र मिशन को सफलतापूर्वक हासिल किया
ISRO ने तीन चौंकाने वाले चंद्र मिशन को पूरे किया हैं. जिसमें पहला मिशन चंद्रयान-1 है. जो चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं की खोज की. दूसरा मिशन विक्रम लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग था, जो असफल रही, लेकिन आर्बिटर ने डेटा उपलब्ध कराया. तीसरा मिशन 14 जुलाई, 2023 को चंद्रयान-3 लॉन्च हुआ था और 23 अगस्त को लैंडर सफलतापूर्वक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा. इसके बाद भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया. बता दें कि इससे पहले 24 सितंबर, 2014 को ISRO ने पहले ही प्रयास में मंगलयान को सफलतापूर्वक मंगल की कक्षा में पहुंचाकर भारत एशिया का पहला और दुनिया का चौथा देश बना गया था.
2 सितंबर, 2023 में ISRO ने आदित्य एल-1 को लॉन्च किया और पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर लेगरेंज पॉइंट 1 पर सफलतापूर्वक तैनात किया. अपने स्थान से आदित्य एल-1 सूर्य का निरंतर और निर्बाध अध्ययन कर सकता है. इस तरह भारत सूर्य के अध्ययन के लिए समर्पित देशों के एक विशेष ग्रुप में जगह बना ली. इस मिशन का लक्ष्य सौर कोरोना, सौर हवा और सूर्य के विभिन्न पहलुओं के बारे में अध्ययन करना है.
इसरो ने बनाया पहला स्वदेशी रॉकेट
ISRO ने 18 जुलाई, 1980 को सैटलाइट लॉन्च वीइकल-3 (SLV-3) भारत का पहला एक्सपेरिमेंटल सैटलाइट लॉन्च वीइकल था. 1983 में इनसैट शृंखला की शुरुआत हुई थी, जो दूरसंचार, दूरदर्शन प्रसारण और मौसम पूवार्नुमान में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. भारतीय रिमोट सेंसिंग शृंखला के उपग्रहों ने जल संसाधन, कृषि, भूमि उपयोग और पर्यावरण निगरानी में और 1990 के दशक में इसरो पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल और जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल जैसे यान विकसित कर अपने उपग्रहों को लॉन्च करने में योग्य बना.
MK-3 से LVM-3
2017 में इसरो ने शक्तिशाली उपग्रह यान जीएसएलवी MK-3 को लॉन्च किया, जिसे अब LVM-3 के नाम से जाना जाता है. ये अपने साथ 3,136 किलो का उपग्रह जीसैट-19 साथ लेकर गया. इसमें क्रायोजेनिक इंजन का प्रयोग होता है. इससे पहले भारत 2,300 किलो से भारी उपग्रहों के लॉन्च के लिए विदेशी प्रक्षेपकों पर निर्भर था. LVM-3 का पहला सफल परीक्षण 2014 में हुआ, जिसका उपयोग चंद्रयान-2,3 के साथ-साथ वनवेब उपग्रहों के लॉन्च के लिए किया गया. बता दें कि आने वाले समय में इसका उपयोग गगनयान जैसे मानवयुक्त मिशन में किया जाएगा.
जब रूस और जर्मनी के वैज्ञानिकों ने मदद से किया इनकार तब..
ISRO को क्रायोजेनिक इंजन बनाने में बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ा. 1980 के दशक में GSLV के विकास की योजना बनाई थी, जिसके लिए क्रायोजेनिक इंजन की जरूरत पड़ी थी. इसके लिए रूस से समझौता हुआ, लेकिन 1990 में अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के के कारण रूस ने समझौते को तोड़ दिया था. इसके बाद ISRO ने जर्मनी के वैज्ञानिकों से मदद के लिए कहा था लेकिन उन्होंने नहीं की. इसके बाद ISRO ने क्रायोजेनिक इंजन बनाने की ठान ली और 2010 में इसे सफलतापूर्वक लॉन्च किया. 2014 में GSLV-D5 मिशन में इसका प्रयोग किया गया. आज इसके कारण ही इसरो जटिल और भारी उपग्रहों को भी आसानी से प्रक्षेपित कर सकता है.
ISRO का नेविगेशन सिस्टम
15 फरवरी, 2017 में ISRO ने PSLV से एक साथ 104 उपग्रह प्रक्षेपित कर इतिहास रच दिया था. इनमें मुख्यत: तीन उपग्रह भारत के और शेष इस्राएल, कजाकिस्तान, नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड और अमेरिका के थे. इससे पहले ISRO ने 2016 में एक साथ 20 उपग्रह प्रक्षेपित किए थे. देश में मौसम पूवार्नुमान,संसाधनों की मैपिंग करना, आपदा प्रबंधन और भू-पर्यवेक्षण के माध्यम से नियोजन, वन सर्वेक्षण रिपोर्ट के लिए इसरो की भू-पर्यवेक्षण तकनीक की जरूरत होती है. मौसम की सटीक जानकारी से जल प्रबंधन, कृषि और आपदा के समय बचाव कार्य इसी तकनीक से संभव हो पाया.