Opinion: लोकतंत्र बहाली के नाम पर बांग्लादेश में कट्टरपंथियों व विदेशी ताकतों की शह पर भ्रमित युवाओं ने नग्नता, बेशर्मी और अराजकता का जो नंगा नाच किया वह संपूर्ण मानवीयता को लज्जित कर देने वाला है .प्रदर्शनकारीयो ने शेख हसीना के घर में घुस उनकी साड़ियां, ब्लाउज और अंतर्वस्त्रों को भी नहीं बक्शा.आंदोलनकारी उनके अंतर्वस्त्रों को हवा में लहरा-लहरा कर संपूर्ण विश्व की हर एक महिबांग्लादेश में तीन दिन से जो घटनाक्रम घटित हो रहा है वह अत्यंत भयावह और चिंतनीय है.परंतु कल जो हुआ वह किसी भी समाज के लिए अत्यंत शर्मनाक, दुखदाई, असहनीय और अमर्यादित. सच कहूं तो यह सभी शब्द इसके लिए उपयुक्त नहीं लग रहे है.ला की गरिमा ,आत्म सम्मान को रौंद रहे थे.ये कहीं से भी लोकतंत्र और आरक्षण खत्म करने की मांग पर जुटे आंदोलनकारी युवा नहीं थे.यह विकृत लोगों की भीड़ लगी जिनका विवेक शून्य हो चुका है .जिन्हें नहीं पता यह क्या कर रहे हैं?
बांग्लादेश में आरक्षण को लेकर कई दिनों से जारी हिंसक प्रदर्शन ने सोमवार को निर्णायक मोड़ अपना लिया और ऐसे हालात बन गए कि प्रधानमंत्री शेख हसीना को 45 मिनट के अंदर देश छोड़ना पड़ा तथा तख्तापलट हो गया .हसीना के इस्तीफा दिए जाने के बाद से सेना ने मोर्चा संभाल लिया और अब खबर यह है कि नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को प्रधानमंत्री बनाने की तैयारी चल रही है.ये प्रदर्शनकारी शेख हसीना से खफा थे .जब वे इस्तीफा देकर देश छोड़कर चली गई तो वह पीएम आवास में जुड़कर हर एक चीज नष्ट करने लगे .उनके आवास में भीड़ ने लूटपाट की, तोड़फोड़ की .शेख मुजीब की मूर्ति तक को तोड़ दिया गया और उन्हें अनेक तरह से अपमानित किया गया.जिन शेख मुजीबुर रहमान ने अपनी और अपने परिवार की जान बांग्लादेश की आजादी के लिए दे दी थी आज उन्हीं की मूर्ति पर हथौड़े चलाए जा रहे हैं.
हिन्दू निशाने पर
जब प्रदर्शनकारियो को यह खबर मिली कि शेख हसीना भारत चली गई हैं और भारत ने उन्हें शरण दी है तो उनका गुस्सा हिन्दुओं पर भड़क गया.वहा के हिन्दू अल्पसंख्यकों पर हमले , हिन्दू मंदिरों पर हमले और आगजनी की खबरें लगातार आने लगी.विदश मंत्री एस. जयशंकर का राज्यसभा में बयान और इसके पहले सर्वदलीय बैठक में उनका यह कथन भारत की चिंता को स्पष्ट करता है कि हिन्दुओं पर जिस तरह से हमले करके उनके घरों को जलाया जा रहा है, उनकी संपत्ति नष्ट की जा रही है इससे प्रतीत होता है कि वहां अब हिन्दू सुरक्षित नहीं है.
बांग्लादेश की 17 करोड़ की आबादी में एक करोड़ 30 लाख के लगभग हिन्दूं है.शेख हसीना खुद मुस्लिम थी और अगर उनसे दिक्कत भी थी आंदोलनकारी द्वारा हिन्दुओं को निशाना क्यों बनाया जा रहा है.आज बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतें जिस तरह हिन्दुओं पर जुल्म और अत्याचार कर रही हैं, मंदिरों पर आक्रमण किये जा रहे हैं, उनके घरों को जलाया जा रहा है तो आज मानवाधिकारों की बात करने वाले देश और बुद्धिजीवी चुप क्यों है ? कल एक स्त्री की गरिमा को सरे आम तार- तार किया गया उस पर फेमिनिज्म के पैरोकार कहा हैं? वही इस तरह के अत्याचार मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर होते तो उनके मानवाधिकारों को लेकर पूरा वैश्विक समुदाय और तथाकथित बुद्धिजीवी तंत्र चंद मिनटों में सक्रिय और मुखर हो उठता.
हिंसा की वजह
बांग्लादेश में स्वतंत्रता सेनानियों के रिश्तेदारों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया जाता है .इस आरक्षण के विरोध में 1 जुलाई से इस प्रदर्शन की शुरुआत हुई.इसी वजह से पूरे बांग्लादेश में आरक्षण को लेकर विद्रोह शुरू हो गया.सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था में सुधार को लेकर बांग्लादेश के शहरों में विरोध प्रदर्शन देखने को मिला.प्रदर्शनकारी और पुलिस के बीच हुई झड़प में लगभग 300 से ज्यादा लोगों की मृत्यु हुई.लेकिन यहां बहुत महत्वपूर्ण बात यह है कि छात्र मौजूदा आरक्षण प्रणाली में सुधार करते हुए प्रतिभा के आधार पर सीट भरने की मांग कर रहे थे, लेकिन जिस आरक्षण व्यवस्था को खत्म करने की मांग कर रहे थे वह मुद्दा शांत हो गया था.आरक्षण के इस मुद्दे को देश में अराजकता फैलाने और तख्ता पलट करने में एक टूल की तरह कट्टरपंथी ताकतों ने प्रयोग किया.छात्रों का आंदोलन ठंडा हो जाने पर जमाते इस्लामी पार्टी ने इसको फिर से हाईजैक किया और इस पार्टी के छात्र संगठन ने इसे पूरी तरह से युवाओं के बीच में फैला दिया.रिपोर्ट के अनुसार पिछले 15 वर्ष में इस पार्टी ने चुपचाप अपने स्थिति में सुधार करते हुए अपने सहयोगी सदस्यों की संख्या 2008 में जो 1.3 करोड़ थी उसे बड़ा कर दो करोड़ 29 लाख कर लिया है.शेख हसीना इस संगठन की ताकत का आकलन सही तरह से नहीं कर पाईं और जो हुआ वह सारा विश्व देख रहा है.
जिस आंदोलन को लोकतंत्र बहाली के नाम पर प्रचारित-प्रसारित किया जा रहा है और कहा जा रहा है कि जनता ने तख्तापलट दिया वहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि बांग्लादेश की कुल आबादी 17 करोड़ है जिसमें से सिर्फ 20 लाख लोग ही इस आंदोलन में शामिल है.अर्थात 1.02 प्रतिशत.लेकिन इस भीड़तंत्र को विदेशी ताकतों, आईएसआई समर्थित जमाते इस्लामी और चीन, पाकिस्तान का पूरा सपोर्ट था जिस कारण से वह यह सब करने में सफल रही.बांग्लादेश में जो हुआ और जो हो रहा है वह कट्टरपंथी ताकतों और उनके मंसूबों को कम आंकने वाले के लिए एक सबक है.
प्रो. मनीषा शर्मा
(लेखिका, डीन व्यवसायिक शिक्षा संकाय इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जजा विवि,अमरकंटक हैं.)
साभार – हिंदुस्थान समाचार