Mangal Pandey Birth Anniversary: भारत को आजाद हुए 75 साल हो चुके है मगर उस आजादी को पाने का सफर बिल्कुल भी आसान नहीं था. अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान की परवाह की बाजी लगाई थी, जिन्हें याद कर आज भी सीना गर्व से फूल जाता है. इसकी शुरूआत साल 1857 में सबसे पहली बार हुई जब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन उठ खड़ा हुआ. बैरकपुर छावनी में ही फिरंगियों के खिलाफ विद्रोह की मशाल में चिंगारी लगाई गई.
बैरकपुर छावनी आमतौर पर काफी शांत छावनी मानी जाती थी. रविवार का वो दिन था जब वीर क्रांतिकारी मंगल पांडेय (Mangal Pandey) ने विद्रोह की गोली चलाकर स्वतंत्रता आंदोलन की शुरूआत की. आज उनकी जयंती (Mangal Pandey Birth Anniversary) के मौके पर उनसे जुड़ी दिलचस्प बातों के बारे में बताने जा रहे हैं.
साधारण जीवन, असाधारण काम
लोगों के दिलों में आजादी की ज्वाला देहकाने वाले मंगल पांडेय के जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में 19 जुलाई सन 1827 में हुआ था. उनके गांव का नाम नगवा था और पिता का नाम दिवाकर पांडेय था. मंगल पांडे ने महज 22 साल की उम्र में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के लिए चयन हो गया था. उन्हें बंगाल की नेटिव इंफेंट्री की 34वीं बटालियन में नियुक्ति की गई थी.
इनफील्ड राइफल के कारतूसों थे एक बड़ा कारण
भारतीय सैनिकों को ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर पहले भारतीय सिपाहियों को ब्राउन बीज की बंदूके दी जाती थी मगर इसके बाद 1856 में इनफील्ड पी 53 राइफल्स दी गई थी. इसके साथ दिक्कत यह थी कि इन राइफल में लोड करने वाले कारतूसों को पहले दातों से कांटना पड़ता था. वहीं उस समय यह खबर (अफवाह) भी तेजी से फैल कि कारतूसों में सुपर और गाय की चर्बी का इस्तेमाल हो रहा है. इससे हिंदु और मुसलमानों दोनों की ही भावनाएं आहत हुई और उन्होंने इनका इस्तेमाल करने से मना कर दिया. उस वक्त यह बात आग की तरह बाकी जगहों पर फैल गई.
मंगल पांडेय ने आजादी की आग में दी चिंगारी
1857 में उस समय देश अंग्रेजों की गुलामी से त्रस्त हो चुका था और इस दुष्चक्र से मुक्ति चाहता था. हालांकि अभी इन मोतियों को एक माला में पिरोना बाकी था. छावनियों में भी बिद्रोह के सुर उठने लगे थे, कारतूसों की बात दूसरी छावनियों तक भी पहुंच रही थी. बैरकपुर छावनी भी इससे अछूती नहीं थी इसी वक्त मंगल पांडेय ने सभी सिपाहियों को एक किया और 29 मार्च को विद्रोह कर दिया.
सुनाई गई फांसी की सजा
अंग्रेज अफसरों ने अपनी तलवारें निकाल ली, उस वक्त उनके पास पिस्टल भी थी. मंगल पांडेय एक साथ अपनी तलवार से दो अंग्रेजो से लड़ाई कर रहे थे. उस वक्त केवल एक अफसर ने आगे से जाकर उन्हें बचाने की कोशिश की. इसी बीच सामने आकर 34 वीं इनफेंट्री ने कमांडिंग अफसरों को घेर लिए. मगर अगले ही पल तस्वीर बदल गई और मंगल पांडेय के कंधे और गर्दन को छूकर गोली निकल कर चली गई. मंगल पांडेय को अस्पताल में भर्ती करवाया गया और अंग्रेजों ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई. 8 अप्रैल को मंगल पांडेय को फांसी दे दी गई.