राष्ट्रीय स्वयंसेवकों संघ के ‘कार्यकर्ता विकास वर्ग’- द्वितीय का समापन समारोह का आज (05, जून,2025) आयोजन नागपुर के रेशिम बाग में किया गया. इस दौरान सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने ऑपरेशन सिंदूर से लेकर भारत की विविधता का जिक्र किया. आइए आपको उनका पूरे भाषण बताते हैं.
आज के कार्यक्रम के हमारे माननीय प्रमुख अतिथि जी, श्रीमान अरविंद नेताम जी, वर्ग के माननीय सर्वाधिकारी महोदय विदर्भ प्रांत के माननीय संघचालक जी, नागपुर महानगर के मानवीय संघचालक जी, उपस्थित विशेष निमंत्रित गण, नागरिक सज्जन माता भगिनी एवं आत्मीय स्वयंसवक बंधु, एक विशेष वातावरण में यह अपना समापन कार्यक्रम सम्पन्न हो रहा है. संघ के स्वयंसवकों के लिए शताब्दी समारोह शुरू होने के पूर्व का यह वर्ग है. 100वां साल चल रहा है, वह पूरा होगा विजयदशमी को उसके बाद उस निमित्त जो कुछ योजना हमारी है वह पूरे वर्ष भर चलती रहेगी.
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परंतु एक तात्कालिक वातावरण जो खड़ा हुआ है कुछ दिनों से देश में, पहलगाम में जो हमला हुआ, नृशंस हमला हुआ और हमारे नागरिकों को हमारे देश के अंदर आकर आतंकवादियों द्वारा मारा गया. स्वाभाविक सबके मन में दुख और क्रोध था. और अपराधियों को शासन होना चाहिए. इसकी उत्कट इच्छा थी. तो कुछ कार्रवाई हुई और शासन किया गया. इस सारे प्रसंग में अपने सेना की क्षमता और वीरता फिर से एक बार चमक उठी. रक्षा के विषय को लेकर जो तरह-तरह के अनुसंधान हमारे होते हैं, उनका कारगर होना साबित हो गया. उनके पराक्रम के साथ निर्णय लेना और करने के लिए कहना कि जिनका दायित्व ऐसे शासन, प्रशासन के लोग, उनकी दृढ़ता भी हम सब ने देखी.
हमारे पूरे राजनयिक वर्ग में, सब दलों के राजनयिकों में, सिर्फ प्रतीक्षित एक सूझबूझ और आपसी सहयोग देश के हित में सारे मतभेद भूलकर इसको भी हम देख रहे हैं और संपूर्ण समाज ने अपनी एकता का एक बहुत बड़ा दृश्य खड़ा किया है.
यह दृश्य अगर चिरस्थायी होता है, प्रसंग पुराना होने पर फीका नहीं पड़ता है और चलते रहता है तो,अपने देश के लिए यह बहुत बड़ा सिंबल है और इसलिए देशभक्ति के इस वातावरण में सारे मतभेद जैसे हम भूल गए है, आपसी स्पर्धाएँ भूल गए, देश के हित में, स्पर्धक एक-दूसरे का सहयोग कर रहे, यह जो चित्र खड़ा हुआ है वह वास्तव में उत्तम प्रजातंत्र का दृश्य है. यह आगे भी चलते रहना चाहिए ऐसी सदिच्छा हम सबके मन में है. क्या होगा? कैसे होगा? कोई बता नहीं सकता, परंतु ऐसा होना चाहिए, ऐसा तो सबको लगता है. क्योंकि हम यह भी जानते हैं कि यह सब होने के बाद समस्या तो मिटी नहीं, टेढ़ापन जब तक कायम है, द्वि-राष्ट्रवाद का भूत जब तक मन में कायम है.
शांतिपूर्वक रह सके इसलिए अलग हुए और अलग होने के साथ ही अशांति करना प्रारंभ किया, यह दोगलापन जब तक जाता नहीं तब तक देश पर यह खतरे बने रहेंगे. अन्दिग्ध, युद्ध के प्रकार भी बदले. आमने-सामने लड़के नहीं जीत सकते, तो “1000 कट्स की पॉलिसी”, आतंकवाद को सहारा देकर उसके जरिए लड़ना, साइबर वॉर से लेकर सारी बातें, एक प्रकार से छद्म युद्ध प्रोक्सी वॉर. यह सतत चल रहा है. बार-बार शासन करने के बाद भी बार-बार सारी दुनिया न कहने के बाद भी यह बात जाती नहीं है और युद्ध के प्रकार आजकल बदल गए. आमने-सामने आकर लड़ना, जो जीतेगा वह सिकंदर यह नहीं रहा. अपने घर में बैठकर ही बटन दबाकर इधर ड्रोनस छोड़े जा सकते हैं. युद्ध की नई-नई तकनीकें आ रही हैं. ये सारी स्थिति हमारे सामने आई है.
इस निमत्त दुनिया के देश क्या-क्या करते है, क्या-क्या जो उन्होंने किया है? उनकी भी परीक्षा हो गई है. सत्य के साथ पूर्ण खड़े कौन होते हैं? कौन उसमें भी अपने स्वार्थ देखकर और उस प्रकार चलते हैं? और कौन सही-सही हमारे विरोधी ही है. उनके अपने स्वार्थों के कारण ही है. परंतु यह सारी परीक्षा भी हो गई है
और इसलिए यह बात ध्यान में आती है कि अपनी सुरक्षा के मामले में हम लोगों को स्वर्निभर होना ही पड़ेगा. हम तो सत्य और अहिंसा वाले देश है हमारी तरफ से दुनिया में हमारा कोई भी दुश्मन नहीं है परंतु दुनिया में दुष्टता है उसके चलते बिना कारण इस प्रकार वारदातें करने वाले लोग है, हैं तब तक हम लोगों को अपनी सुरक्षा के लिए पूर्ण सन्नद्ध और पूर्ण सजग होना पड़ेगा. नई-नई प्रकार की तकनीक उसका अनुसंधान होना चाहिए. सेना प्रमुख ने कह दिया कि सारे अनुभव का हम भी विचार कर रहे है हमको कहां-कहां और आगे बढ़ना है, क्या-क्या करना है, यह सब चलना चाहिए. सेना, शासन, प्रशासन यह सब लोग यह करे परंतु केवल इनसे नहीं होता असली बल तो समाज का होता है.
द्वितीय महायुद्ध में लगातार महीना भर अपनी पूरी ताकत एक करके हिटलर ने लंदन पर बमबारी की ताकि वह झुक जाए. देश का नेतृत्व था तो विचार करने लगा की शरण जाना चाहिए क्या? सेना समाप्त हो गई? वायु सेना नहीं है. नौसेना बकी नहीं है और हिटलर का दोस्त मुसलनी तैयार है कि मैं बीच- बचाव करता हूँ तो उनके भी मन में विचार चर्चिल जैसे प्रधानमंत्री के मन में आया कि क्या करे?
उसने राजा को बताया इंग्लैंड कि मेरा मन तो नहीं है लेकिन मेरा मंत्रिमंडल चाहता है कि हम लोग संधि कर ले और नुकसान से बचे, सारा विनाश हो रहा है और रोकने की ताकत हमारी नहीं है.
तो राजा ने उसको पूछा कि तुम्हारे मंत्रिमंडल ने तुमको चुनकर दिया कि किसने चुनकर दिया? उसने कहा जनता ने. तो प्रसंग ऐसा वर्णन करते हैं कि चर्चिल इंग्लैंड के मेट्रो में घुमा और उसने लोगों से बात करी अब युद्ध क्या होता है? कितना नुकसान उठाना पड़ता है, कैसे संवाद होता है अपनी ताकत क्या यह कोई जानते नहीं सामान्य लोग इसको नहीं जानते लेकिन उनके मन में एक देशभक्ति है. तो वह चर्चिल को बताने लगे कि बिल्कुल शरण नहीं जाना कि हम लड़ेंगे, गली-गली में लड़ेंगे.
हमारे पास कुछ नहीं तो बर्तनों से लड़ेंगे आज तो में ऐसा लड़ना पड़ता तो क्या होता? उसकी कल्पना उनको नहीं थी लेकिन उनका नीति सहरिया ऐसा था. उसके आधार पर चर्चिल ने कहा फिर.पार्लियामेंट में जाकर. संधि का विचार छोड़ दिया और कहा कि हम आसमान में लड़ेंगे, समुद्र में लड़ेंगे, सर्वत्र लड़ेंगे और कदाचित इस लड़ाई में अगर हमको विजय नहीं मिली तो हमारी अगली पीढ़ी, हमारे साम्राज्य में जो बाकी देश है वहां जाकर लड़ाई जारी रखेगी लेकिन पूर्ण विजय प्राप्त किए बिना हम रहेंगे नहीं, शरण तो बिल्कुल नहीं जाएगी. यह बल उनको कहा से प्राप्त हुआ? युद्ध के बाद चर्चिल का अभिनंदन किया समाज में कि उस अभिनंदन में कहा गया कि चर्चिल इस लॉयन ऑफ इग्लैंड. तो चर्चिल में उत्तर ने कहा कि में लॉयन नहीं हूं, मैं सिम हूं. यू ऑर दी लॉयंस? आई ओनली रोड फॉर यू. आप मत है. मैंने आपके तरफ से केवल गर्जना है.
देश का असली बल उसके समाज का बल: RSS प्रमुख मोहन भागवत
देश का असली बल उसके समाज का बल होता है, समाज को सजग और एक रहना चाहिए – पूजनीय सरसंघचालक जी#RSSNagpurVarg pic.twitter.com/R7E5oAJLp4
— RSS (@RSSorg) June 5, 2025
देश का असली बल उसके समाज का बल होता है और इसके लिए हमारे समाज को बहुत सजग रहना चाहिए. हमारा देश विविधताओं का देश है. कई प्रकार की विविधताएं और समस्याएं भी हैं. कभी-कभी एक की समस्या दूसरे के ध्यान में नहीं आती है. एक के लिए लाभ की बात दूसरे के लिए नुकसान की होती है. इस सारे जंजाल में से देश के लिए निर्णय करना, एक प्रकार से चलना ये बहुत कसरत हो जाती है. उसके चलते समाज में असंतोष रहता है जो स्वाभाविक भी है. परंतु हमारे देश के हित के सामने ये सब हमारे लिए जायज नहीं है. हर हालत में समाज में किसी वर्ग से लड़ाई न हो ये हमको देखना ही पड़ेगा. आपस में सद्भावना का ही व्यवहार रखना पड़ेगा.
एक जमाना था, जब हम परतंत्र थे, शासक हममे लड़ाई चाहते हैं. वो उपद्रवियों का साथ देते थे. इसलिए जो निरअपराध लोग थे, उनको लड़ना पड़ता था. लेकिन अब हमारा शासन है, भारत का शासन है, भारत के संविधान के अनुसार शासन है. तो समाज का आपस का व्यवहार करते समय हिंसा करना, बिना कारण गाली-गलौज वाली भाषा का उपयोग करना, प्रतिक्रिया में आ कर कुछ भी बोलना, ये सारी बातें हमको छोड़ देनी पडे़ंगी, ठंड़े दिमाग से विचार करके उकसाने वाले लोग हैं. विक्टिम हुड उत्पन्न करने वाले लोग हैं, भड़काऊ भाषा उत्पन्न करने वाले लोग हैं. इन सब के चंगुल में नहीं फसना अपने स्वार्थ लाभ के लिए समाज में इस प्रकार के फूट झगड़ा चाहने वाले भी लोग हैं और इस प्रकार का फूट झगड़ा हो तो भी सदियों से हम एक रहे एक रहेंगे , ऐसे ओवरकॉन्फिडेंस में भी अपने स्वार्थ के लिए थोड़ा असंयम करने वाले लोग हैं. हमको ये नहीं करना चाहिए.
एक दूसरे के साथ सद्भावना सदाचार, सदविचार और सहियोग ये करने की आवश्यकता है क्योंकि हम सब लोग इस देश के अलग-अलग भाषाओं के बोलने वाले, अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा करने वाल , अलग-अलग खान-पान, रीती-रिवाज वाले, अलग-अलग हित संबंध आज जिनके उत्पन्न हुए विविधिता के कारण ऐसे हम सब लोग हमारी जड़े तो एकता में है विविधिता में नहीं है. रविंद्रनाथ ठाकुर ने कहा की विविधता में एकता का परिचय देना और एकता के आधार पर विविधिता का समंवय करना सिखाने का काम ही भारत का प्रमुख धर्म है. उस एकता में हमारी जड़ें होनी चाहिए, उसका ध्यान रखना चाहिए, परखता विविधता में पड़ता है. मैं मेरी भाषा बोलूंगा. उस भाषा के प्रति मेरे मन में गौरव भी है, मेरी अपनी पूजा है वो मुझे प्रिय है.
ये सारी बातें मेरी विशेषताएं, मेरे लिए बहुत प्रिय है. उनका रक्षण करना है, सब करना है लेकिन इन सब के ऊपर हमारी सबकी एकता है. ये सारी विविधिता होने के बाद भी देश के नाते हम एक हैं , समाज के नाते हम एक हैं. एक ही सनातन संस्कृति का प्रवाह हम सब के आचरण को निर्धारित करता आया है. ऊपर की जो बात है सभ्यता की- कपड़े, नाच-गाना, भाषा-भूषा, भजन-भवन, भ्रमण-भोजन वो विभिन्न प्रकार का है. लेकिन जो मूल व्यवस्था है, वो हम सब की समान है. और पूर्वजों से हम एक हैं. हमारे कोई अलग-अलग पूर्वज नहीं है. ये भ्रम पैदा किया गया है. अंग्रजों के द्वारा. हम सब एक हैं. हमको विभिन्न प्रकार के लोगों को एक नहीं होना है. हम भूल गए थे कि हम एक हैं. हमको एक होना है. और वास्तव में सारा विश्व एक है. मानव एक है. उस एकता का भान सारी दुनिया को कराना है. यह हमारे सामने हमारे राष्ट्र के अस्तित्व का, हमारे भारत की नव स्वतंत्रता का. 15 अगस्त 1947 में हम स्वतंत्र हुए, उसका प्रयोजन क्या है? उसका प्रयोजन ये है, उसके लिए हमें तैयार होना है.
विविधताओं को संभालते हुए, उनको स्वीकार करते हुए, उनका सम्मान करते हुए, एकता पर सबकी दृष्टि लाना और उसके आधार पर विकास का पथ मानव जाति का पुर्ननिर्धारित करना, इसका उदाहरण भारत को दुनिया के सामने रखना है. दुनिया को उसकी आवश्यकता है और इस दृष्टि से जो बाते हमारे अतिथि के द्वारा रखी गईं, वो बहुत महत्वपूर्ण हैं. हम सबको उसका विचार करना ही है. हम तो कर ही रहे हैं संघ के लोग. विकास और पर्यावरण का विरोध क्यों होना चाहिए, दोनों साथ-साथ चल नहीं सकते क्या? चल सकते हैं. लेकिन एकता का विचार मन में रखकर सारी योजना बननी चाहिए.
हमारे आदिवासी बंधु हमारा ही समाज है. हमारे समाज में अनेक देवी-देवता हैं. ये सब होने के बाद भी समाज के नाते हम सब एक हैं. और अगर एक समाज हैं, तो आपको ये कहने की जरूरत नहीं कि हमारी ये मदद कीजिए, संघ का काम ही है ये. संपूर्ण हिंदू समाज में संघ सबको मानता है. उसकी समस्याओं में जितनी हमारी ताकत है, उतना हम करेंगे. हमारा एक तरीका है. शासन के लिए आपने कुछ कहा तो शासन के पास पहुंच जाएगा, परंतु शासन अपना काम करेगा और कैसा करता है आपको ज्यादा मालूम है, आप रहे हैं? इसलिए वहां हमेशा समय लगता है. और सभी फैक्टर्स एक साथ बहुत कम बार सोचे जाते हैं. लेकिन हम कहते हैं शासन वगैरह क्या है, समाज की ताकत है. तो शासन-प्रशासन में सुनवाई नहीं होती तो क्या बिगड़ा?
PESA कानून की बात आपने की, उस कानून का उपयोग कैसे करें, जिससे समाज में भेद उत्पन न हो. कुछ अलग हो रहा है, किसी को न लगे और फिर भी पेसा कानून इसलिए लाया गया कि वो सारा ठीक हो, इसका उदाहरण आपको देखना है तो विभिन्न संगठनों के माध्यम से हमारे स्वयं सेवकों ने काम किया है. नासिक जिले में काम है. उसको कैसे लागू होना चाहिए. इसका सबसे सुंदर उदाहरण वहां हैं. मैंने कल आपको चित्रांजलि पवार का नाम बताया.
बैतूल और आसपास के इसमें भी योजना पूर्वक उस प्रकार का काम चल रहा है. बस्तर में भी होगा. हम हैं ही. आपको विनती करने की जरुरत नहीं है. मैं कहता हूं आपने आकर हमको कर्तव्य बोध दिया है. हम जहां-जहां पहुंचते हैं वहां यह सब करते हैं. पहुंच हमारी बढ़नी चाहिए, बस इतनी बात है. और इसलिए जो भी सारी बातें आपने कहीं उसमें हमारे तरीके से हम जो कुछ कर सकते हैं हम जरूर करेंगे. मतांतरण का विषय है, मतांतरण क्यों होना चाहिए? हम तो यह मानते हैं हमारी परंपरा की रुचि अनुसार मार्गों का वैचित्र्य होता है.
कनवर्जन इज ए वायलेंस: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत
वैचित्र्य होता है- रुचीनां वैचित्र्याद् रुजिकुटिल नानापथजुषाम् नृणाम् एको गम्यः… ये जो तरीके हैं पूजा के खान-पान के संस्कृति के, ये अलग-अलग है. रुचि प्रकृति के अनुसार, अपनी परिस्थित के अनुसार, अपनी सोच के अनुसार, ये बिल्कुल स्वाभाविक बात है. सब जाते हैं एक ही दिशा में यदि ठीक जाएं तो. बीच में स्वार्थ न आए, बीच में विकार न आए, इसको भुना के अपना उल्लू सीधा करने की बुद्धि न हो तो कुछ भी करता नहीं, सब एक ही तरफ जाने वाले हैं, ऐसा है तो मतांतरण क्यों करना? गुलाबराव महाराज को पूछा मिशनरियों ने कि सभी रास्ते सत्य हैं तो ईसाई क्यों नहीं बनना. तो उन्होंने कहा कि यदि सभी रास्ते सत्य हैं तो ईसाई क्यों बनना? अपने मन से अगर कोई पूजा का तरीका बदलता है तो हमारे यहां किसी ने ऑबजेक्शन लिया नहीं है. परंतु लोभ लालच जरबरदस्ती से करना ये सोच के या कह के करना कि तुम्हारा रास्ता गलत है, तुम्हारे पूर्वज गलत थे, हम तुमको सही कर रहे, एक प्रकार से गाली हो गई. कनवर्जन इज ए वायलेंस.
हमने उसका कभी समर्थन, हमको पंथ समुदाय को कोई वैर नहीं. ईसा मसीह,पैगंबर साहब सब श्रद्धा है, उनके बारे में. हम भी उस श्रद्धा में सहभागी हैं. परंतु अपने-अपने तरीके से सब चलेंगे. और इसलिए ऐसे जो गए, लोभ लालच जबरदस्ती से, वो अगर वापस आना चाह रहे हैं तो उनको स्वीकार करना चाहिए. क्योंकि इट इज करेक्शन. इसलिए इन सब बातों में हम आपके साथ हैं. आदिवासी समाज कोई अलग समाज नहीं है, मैं तो कई बार कहता हूं कि हमारी संस्कृति जो जन्मी वो जंगलों और खेतों में से जन्मी.
इसलिए आदिवासी समाज हमारा मूल है. उनकी अपनी भाषाओं में जो तत्वत्त्रायन बतातें हैं. वो नासदिय सुक्त के पास जाता है. पर्यावरण के प्रति मित्रता, सब जगह पवित्रता देखना, पेड़ पौधों को देखना पूछना, निसर्ग की पूजा करना, ये भारत छोड़ के कहा परपंरा है, ये भारत की परपंरा है. हम आज अपने आप को हिंदू कहते हैं, हिंदू बने हैं, कहां से बने हैं? और इसलिए अपने समाज का एक अभिन्न अंग मान कर हमारी शक्ति पूरी लगाकर और हमारे अपने तरीके से हम समाज के बल के आधार पर काम करते हैं. हम काम करेंगे और ठेका तो हम लेते नहीं, हम काम करेंगे यानि हम और जिनके लिए काम करना है, वो सब मिल कर करेंगे क्योंकि काम होने का तरीका यही रहता है- अपना भाग्य अपने को बनाना रहता है.
नेता, नारा, नीति, पार्टी, अवतार, सरकार, विचार, महापुरुष ये सहायक हो सकते हैं लेकिन दस कदम हमको आगे जाना पड़ता है तो पांच कदम ये पीछे आते हैं ये. आज की बात नहीं कर रहा हूं मैं, ये हमेशा ऐसा होता आया है, सारे परिवर्तनों का कारण समाज है. और इसलिए अपने आचरण से अपने उदाहरण से, समाज में परिवर्तन का वातावरण उत्पन्न करना, ताकि समाज खुद अपना परिवर्तन करे तो फिर नीतियों में परिवर्तन आना आवश्य भावी है, धैर्य रखना पड़ेगा, अपना स्वतंत्र देश है, ये अपना समाज है, हजार साल तक हम परतंत्रता में रहे, इसलिए हमको लड़ने की आदत हो गई, बगावत करने की आदत हो गई. तब वो आवश्यकता थी लेकिन अब अपने लोग हैं, कभी-कभी भूल जाते हैं अपनापन तो भी धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करके, अपने आप को ठीक रख के अगर ये किया जाए तो ये परिवर्तन आएगा.
‘निश्चित होगा परिवर्तन, जाग रहा है जन गण मन’
हमने गीत में अभी कहा आपके सामने ‘निश्चित होगा परिवर्तन, जाग रहा है जन गण मन’ इस जन गण मन को जागरूक करने वाला वातावरण बनाने का काम करने के लिए एक देशव्यापी कार्यकर्ता समूह का निर्माण करना, ये संघ का कार्य है, और वो कर रहे हैं. हम अपने पद्धति से करते हैं, अपने बलबूते करते हैं, किसी को पुकारते नहीं मदद के लिए, अपने आप जो आ जाए उसका स्वागत है. सबकी मदद करते हैं इसलिए हमारी गति थोड़ी धीमी रहती है, अब उसको बढ़ाएंगे, लेकिन साईकल की गति कार की गति जितनी नहीं हो सकती, और जो हमको करना है उसके लिए साइकिल ही चलानी पड़ेगी, लेकिन मैं विश्वास पूर्वक यह कह सकता हूं कि हम सब मिलकर अपना भाग्य संवारने में लग जाए तो इन समस्याओं का निदान निकलेगा, ठीक से निकलेगा. धैर्य पूर्वक सतत, प्रतीक्षा करते हुए काम करना पड़ेगा, तो ऐसे सब कामों में हम सबके साथ हैं, और हमेशा साथ देंगे, क्योंकि संघ इसी के लिए है. ऐसे कार्यकर्ता तैयार करने का प्रशिक्षण इन वर्गों में होता है.
98 साल से नागपुर में यह वर्ग हो रहा है, 1927 में शुरू हुआ, समय के साथ बाद भी होता गया, स्वरूप भी बदलता गया लेकिन देशभर के ऐसे कार्यकर्ता वर्ग के लिए खड़े होते हैं और उनके कर लेने से देश का वातावरण बदलता है, जिसका अनुभव आपने लिया है. 1925 में संघ स्थापना के समय समाज का मन कैसा था वातावरण कैसा था और आज 100 साल पूरे होते-होते संघ का मन कैसा है, वातावरण कैसा है.
4 दिन में हो हल्ला भड़का करके कुछ कर दिया तो वह दो दिन में समाप्त हो जाता है. सावरकर जी ने एक बार कहा था संघ के कार्यक्रम में आकर हम लोग काम करते हैं, हमारा काम मूसलाधार वर्षा जैसा है, आएगी दबादब बरसेगी, सभी इधर-उधर हो जाएगा और चली जाएगी, पानी भी बह जाता है आद्रता भी सूख जाती है, उसका फायदा नहीं होता, दूसरे कोई फसलों को. आपका काम कैसा है, बूंद बूंद वर्षा होती है, वह जमीन में दबे बीजों को पोषित करती है, सोए हुए बीजों को अंकुरित करती है और उसमें से फसल खड़ी होती है.
संघ का तरीका यही है. इसलिए थोड़ा कभी लगता है आपको करना चाहिए. वास्तव में आपने जो सारी बातें कही हैं, उसके लिए आपके सामने ही मैंने अपने कार्यकर्ताओं को कहा, हमको अलग से समिति बनानी नहीं पड़ती है, हमारी कार्यकारिणी उस स्तर पर है. सौभाग्य से संघ की सभी कार्यकारिणियां सक्रिय लोगों की कार्यकारिणी में से है, नाम की नहीं है, उनके साथ जैसे मिलना जुलना होगा बातें आगे बढ़ेंगी, तो आप लोगों को बिलकुल डरने की आवश्यकता नहीं है, हम सब हैं साथ हैं और हम सब ये करेंगे. परंतु यह सारे समाज में करना है और सारे समाज में करना है तो इन बातों को अपने जीवन में चरितार्थ करने वाले समाज के साथ प्रेम रखने वाले मन में बिल्कुल भेद न रखते हुए सबको अपना मानने वाले कार्यकर्ताओं की आवश्यकता है और वही कार्यकर्ता निर्माण का काम संघ कर रहा है.
उसका एक नमूना आपने देखा है, मेरी प्रार्थना यही है कि यह कार्य केवल संघ का नहीं है, हम सबको मिलकर अपना भाग्य बनाना है, हम सब के भाग्य में ही देश का भाग्य है, उसे संवारने के लिए ही यह सब कार्य हो रहा है. और इसलिए दर्शन की दृष्टि कौतुक की दृष्टि रखने से नहीं होगी, प्रत्यक्ष सक्रियता की आवश्यकता है. अधिक से अधिक स्वयंसेवकों के साथ देश हित में संघ के स्वयंसेवक जो कार्य करते हैं. इसका अनुरोध मैं आपके सामने रखता हूं और अपनी बात पूरी करता हूं.