Opinion: धूम्रपान को लेकर पिछले कई दशकों में दुनियाभर में हुए अनेक अध्ययन हुए हैं. इनका सार यही है कि धूम्रपान हर दृष्टि से सेहत के लिए हानिकारक है. लेकिन जब तमाम जानकारियों और तथ्यों के बावजूद हम अपने आसपास किशोरवय बच्चों को भी धूम्रपान करते देखते हैं तो स्थिति काफी चिंताजनक प्रतीत होती है. दरअसल ऐसे किशोरों के मन मस्तिष्क में धूम्रपान को लेकर कुछ गलत धारणाएं विद्यमान होती हैं, जैसे धूम्रपान से उनके शरीर में चुस्ती-फुर्ती आती है, उनका मानसिक तनाव कम होता है, मन शांत रहता है, व्यक्तित्व आकर्षक बनता है, कब्ज की शिकायत दूर होती है आदि-आदि. तमाम वैज्ञानिक शोधों के बावजूद ऐसे व्यक्ति समझना ही नहीं चाहते कि धूम्रपान करने से उनके अंदर ऐसी कोई ताकत पैदा नहीं होने वाली कि देखते ही देखते वो किसी ऊंचे पर्वत पर छलांग लगा सकें या महाबली पवनपुत्र हनुमान की भांति विशाल समुद्र लांघ जाएं. वास्तविकता यही है कि धूम्रपान एक ऐसा धीमा जहर है, जो धीमे-धीमे इसका सेवन करने वाले व्यक्ति का दम घोंटता है.
धूम्रपान शरीर में कई प्रकार की प्राणघातक बीमारियों को जन्म देता है और ऐसे व्यक्ति को धीमी गति से मृत्यु शैया तक पहुंचा देने का माध्यम बनता है. प्रतिवर्ष विश्वभर में 31 मई को ‘विश्व तम्बाकू निषेध दिवस’ मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य तम्बाकू सेवन के व्यापक प्रसार और नकारात्मक स्वास्थ्य प्रभावों की ओर ध्यान आकर्षित करना है, जो दुनियाभर में प्रतिवर्ष लाखों मौतों का कारण बनता है. इस वर्ष विश्व तंबाकू निषेध दिवस ‘तंबाकू उद्योग के दखल से बच्चों की रक्षा करना’ थीम के साथ मनाया जा रहा है ताकि भविष्य की पीढ़ियों की रक्षा की जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि तंबाकू के इस्तेमाल में गिरावट जारी रहे.
धूम्रपान करने वालों द्वारा सालभर में सात हजार करोड़ से ज्यादा सिगरेट फूंक दी जाती हैं. हर साल फूंकी जाने वाली इन्हीं सिगरेट के धुएं से वातावरण भी कितना प्रदूषित होता है, इसका अनुमान इसी से लगा सकते हैं कि इस खतरनाक धुएं से करीब 50 टन तांबा, 15 टन शीशा, 11 टन कैडमियम तथा कई अन्य खतरनाक रसायन वातावरण में घुलते हैं. हालांकि सिगरेट महंगी होने के कारण भारत में बीड़ी का प्रचलन निम्न तथा मध्यमवर्गीय तबके में ज्यादा है और ऐसा अनुमान है कि देश में प्रतिवर्ष सौ अरब रुपये मूल्य से भी अधिक की बीड़ी का सेवन किया जाता है. एक सरकारी अध्ययन के मुताबिक तम्बाकू सेवन से होने वाली बीमारियों के इलाज पर सालभर में करीब 1.04 लाख करोड़ रुपये खर्च हो जाते हैं. तीन दशक पूर्व प्रकाशित पुस्तक ‘मौत को खुला निमंत्रण’ में विस्तार से यह बताया गया है कि धूम्रपान वास्तव में एक ऐसा धीमा जहर है, जो हमारे शरीर में धीरे-धीरे प्राणघातक रोगों को जन्म देता है और व्यक्ति को धीमी गति से मृत्यु शैया पर पहुंचा देता है.
दुनियाभर में धूम्रपान के कारण 2019 में 77 लाख लोगों की मौत हुई, जिनमें से 17 लाख मौतें इस्केमिक हार्ट डिजीज के कारण, 16 लाख सीपीओडी के कारण, 13 लाख ट्रैकियल, ब्रोंकस और फेफड़ों के कैंसर से तथा 10 लाख स्ट्रोक के कारण हुई. रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में होने वाली मौतों में से हर 5 में से 1 पुरुष की मौत धूम्रपान के कारण हो रही है. विभिन्न सर्वेक्षणों के अनुसार माना गया है कि विकसित देशों में चालीस फीसदी से ज्यादा पुरुष और इक्कीस फीसदी से ज्यादा स्त्रियां धूम्रपान करती हैं जबकि विकासशील देशों में सिर्फ आठ फीसदी स्त्रियों को इसकी लत लगी है तथा पुरुषों की संख्या पचास फीसदी से अधिक है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार तम्बाकू के सेवन के कारण प्रतिदिन करीब आठ हजार व्यक्ति फेफड़ों के कैंसर के शिकार होकर मर जाते हैं.
संगठन का अनुमान है कि यदि दुनियाभर में धूम्रपान की लत ऐसे ही बढ़ती रही तो बहुत जल्द धूम्रपान के कारण पचास करोड़ लोग मारे जा चुके होंगे और अगले तीस वर्षों में केवल गरीब देशों में ही धूम्रपान से मरने वालों की संख्या दस लाख से बढ़कर सत्तर लाख तक पहुंच जाएगी. संगठन का अनुमान है कि प्रतिवर्ष विश्वभर में आठ हजार से ज्यादा नवजात शिशु धूम्रपान की वजह से असमय काल के ग्रास बन जाते हैं. आंकड़ों से पता चलता है कि सभी प्रकार के कैंसर में से करीब 40 फीसदी का कारण धूम्रपान ही होता है. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि कैंसर, हृदय रोग, सांस की बीमारी, डायबिटीज इत्यादि बीमारियों में भी धूम्रपान काफी खतरनाक हो सकता है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को धूम्रपान से बचना चाहिए.
बहरहाल, धूम्रपान छोड़ने के फायदों के बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि धूम्रपान छोड़ने के सिर्फ बीस मिनट के अंदर उच्च रक्तचाप में गिरावट आती है तथा बारह घंटे के बाद रक्त में कार्बन मोनोक्साइड के विषैले कणों का स्तर सामान्य हो जाता है। दो से बारह सप्ताह में फेफड़ों की कार्यक्षमता में तेजी से वृद्धि होती है तथा एक से नौ माह में खांसी तथा श्वसन संबंधी समस्याएं कम हो जाती हैं. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक मनुष्य के फेफड़ों में जादुई क्षमता होती है, जो धूम्रपान से होने वाले कुछ नुकसान को स्वयं ठीक कर देती है और जो व्यक्ति धूम्रपान छोड़ देते हैं, उनकी चालीस फीसदी कोशिकाएं ऐसे लोगों की तरह ही हो जाती हैं, जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया.
योगेश कुमार गोयल
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं.)
साभार – हिन्दुस्थान समाचार