DR. Rajendra Prasad Death Anniversary: आजाद भारत के पहले राष्ट्रपति और एक महान व्यक्तित्व के मालिक डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को किसी परिचय की जरूरत नहीं है. स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान देने से लेकर देश को संभालने की जिम्मेदारी तक, उनके कार्य ही पूरे जीवन की गवाही देते हैं. राजेन्द्र प्रसाद हमेशा ही अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने वालों में शामिल रहे, उनका साहस ही लोगों को देशभक्ति की भावना से सराबोर कर देता है. 28 फरवरी, यानी आज ही के दिन साल 1963 को राजेन्द्र प्रसाद ने अंतिम सांस ली थी. ऐसे में आज देश उनको श्रद्धांजलि दे रहा है. आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण रोचक तथ्य…
देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद (3 दिसम्बर 1884 – 28 फरवरी 1963) का सादगी भरा जीवन और उनका महान व्यक्तित्व हर किसी को हमेशा प्रभावित करता रहा है. डॉ. प्रसाद ने राष्ट्रभक्ति और सत्यनिष्ठा की कई मिसालें देश के सामने रखीं. उन्हें बतौर राष्ट्रपति के रूप में जितना भी वेतन मिलता था, उसका आधा हिस्सा वो राष्ट्रीय कोष में दान कर देते थे. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में विशेष योगदान देने वाले डॉ. प्रसाद महात्मा गांधी के विचारों से भी काफी प्रभावित हुए थे. इसके अलावा उन्होंने भारतीय संविधान निर्माण में भी अहम भूमिका निभाई थी.
डॉ. प्रसाद का शुरुआती जीवन
डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म बिहार के जीरादेई में 3 दिसंबर 1884 को हुआ था. उनके पिता का नाम महादेव सहाय और माता का नाम कमलेश्वरी देवी था. डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने आजाद भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में 12 वर्षों तक इस पद को संभाला. 26 नवंबर 1950 को भारत का संविधान लागू होने के समय वो देश के प्रथम राष्ट्रपति बनें. साल 1957 में उन्हें दोबारा राष्ट्रपति पद के लिए चुना गया साथ ही 1962 में वह अपने पद से हट गए. इस बीच उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान “भारत रत्न” से भी नवाजा गया था.
इस तरह स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े
वर्ष 1917 में महात्मा गांधी से नील की खेती से जुड़े मुद्दे को लेकर डॉ. राजेंद्र प्रसाद की मुलाकात हुई थी. इस दौरान महात्मा गांधी उनसे इतने प्रभावित हुए कि चंपारण आंदोलन के दौरान उनके बीच संबंध काफी मजबूत हो गए. शिक्षा में अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी करने बाद डॉ. प्रसाद, देश के आजादी के आंदोलन से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ गए. वो बापू के विचारों से बहुत प्रभावित थे, जिसके चलते साल 1931 के “नमक सत्याग्रह आंदोलन” और 1942 में “भारत छोड़ो आंदोलन” में उन्होंने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. वर्ष 1934 में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन में अध्यक्ष के तौर पर चुना गया. साथ ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस के अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद डॉ. प्रसाद को यह पद फिर से संभालना पड़ा.
सादगी की मिसाल थे डॉ. प्रसाद
डॉ. राजेंद्र प्रसाद एक सादगी पसंद इंसान थे, जिससे लोगों को बड़े स्तर पर प्रभावित किया. राष्ट्रपति भवन में जाने के बाद भी उन्होंने सामान्य नागरिक की तरह जीवन जिया. देश के वो पहले राष्ट्रपति थे, जो जमीन में बैठकर भोजन करना पसंद करते थे. उन्होंने राष्ट्रपति भवन में उस समय प्रचलित अंग्रेजी तौर तरीकों को भी नहीं अपनाया था. वो पूरी जिंदगी साधारण तरीके से जीवन जीते रहे.