कानपुर: चना देश में उगाई जाने वाली दलहनी फसलों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. इसमें कैल्शियम, आयरन, विटामिन और कार्बोहाइड्रेट पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है. शरीर में होने वाली रक्त की कमी, कब्ज, मधुमेह और पीलिया जैसे रोगों में चना बहुत असरकारक सिद्ध होता है. किसान चना की फसल का प्रबंधन सही करें तो कम लागत में अधिक आमदनी होती है. यह जानकारी सोमवार को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के दिलीप नगर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डॉक्टर अजय कुमार सिंह ने दी.
उन्होंने बताया कि चना देश में उगाई जाने वाली दलहनी फसलों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. इसमें कैल्शियम, आयरन, विटामिन और कार्बोहाइड्रेट पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है. शरीर में होने वाली रक्त की कमी, कब्ज, मधुमेह और पीलिया जैसे रोगों में चना बहुत असरकारक सिद्ध होता है. डॉक्टर सिंह ने बताया कि प्रदेश में चने का क्षेत्रफल लगभग 627 हजार हेक्टेयर है.
उन्होंने बताया कि चने की फसल में यदि फली छेदक कीट का नियंत्रण समय पर नहीं किया जाता है तो पैदावार में लगभग 50 से 60 प्रतिशत तक का नुकसान हो जाता है. चने का फली छेदक कीट शुरुआत में पत्तियों को खाता है. इसके बाद फली लगने पर उसमें छेद कर दानों को खोखला कर देता है. इससे दाना नहीं बन पाता व फसल खराब हो जाती है.
चना की फसल में जैविक नियंत्रण से होगा अधिक लाभ-
उन्होंने बताया कि चना में जैविक नियंत्रण के लिए फरवरी माह में 5 से 6 फेरोमेन ट्रैप प्रति हेक्टेयर लगा दे. एक या एक से अधिक फली छेदक कीट की तितलियां आने पर दवा का छिड़काव करना है. इसके लिए चना फसल में 50 प्रतिशत फूल आने पर एनपीबी 250 एल.ई.एक मिलीलीटर दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर दें. 15 दिन बाद बीटी 750 मिली लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें अथवा 50 प्रतिशत फूल आने पर 700 मिलीलीटर नीम का तेल प्रति हेक्टेयर घोल बनाकर छिड़काव कर दें.
डॉ सिंह ने बताया कि रासायनिक नियंत्रण के लिए इंडोक्साकार्ब 14.3 एससी एक मिलीलीटर दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर या इमामेक्टिन बेंजोएट 5 एसजी 0.5 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. जिससे चने की फसल सुरक्षित रहेगी व किसान को बाजार में भाव भी अच्छा मिलेगा.
साभार: हिन्दुस्थान समाचार