देवभूमि कहे जाने वाले लेह लद्दाख में किसी भी आपदा से अनजान मीठी नींद सो रहे लोगों पर आधी रात को वर्षा-जल प्रलय बनकर टूट पड़ा। अचानक 5 अगस्त 2010 को बादल फटने से बाढ़ के रूप में पानी सड़कों व खेतों में हरीभरी फसलों को तहस नहस करते हुए अपने साथ-साथ बड़े-बड़े पत्थरों के टुकड़े भी बहा लाया। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना था मानो पूरा का पूरा पहाड़ पानी के साथ नीचे आ गया था। नींद में ही लोग घरों सहित कुछ किलोमीटर बह गये। उस समय के आपदा प्रबंधन अधिकारी जिगमीत तपका बताते हैं कि 600 करोड़ का नुकसान चंद घंटो में ही हो गया था। किन्तु यह ईश्वर की ही कृपा थी कि निकट ही चोगलमसर में चल रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्राथमिक शिक्षा वर्ग में इस त्रासदी की खबर पहुंच गई। जम्मू कश्मीर सेवा भारती के क्षेत्रसंगठनमंत्री जयदेव सिंह बताते हैं कि “शिक्षा वर्ग को वहीं समाप्त कर सभी स्वयंसेवक पीड़ितों की मदद के लिए लद्दाख चल पड़े। अपनी जान खतरे में डाल कर इन स्वयंसेवकों ने 27 जानें बचा कर पीड़ित परिवारों के लिए भोजन,पानी, दवाईयां,मच्छरदानी व बिस्तर आदि की तुरन्त व्यवस्था की।”
इतना ही नहीं सेवाभारती ने लद्दाख कल्याण संघ के साथ लोगों को स्वावलंबी बनाने के लिए रोज़गार प्रशिक्षण देने का कार्य भी आरंभ किया।
पाँच घाटियों से घिरे लेह लद्दाख की सुंदरता सभी को आकर्षित करती है ।किन्तु बारह महीने सदैव बर्फ से ढ़के पर्वतों से घिरी लामाओं की इस धरती पर हमेशा तेज़ ठण्ड रहती है इसलिए यहाँ स्वाबलंबन और पुनर्वास बहुत ही कठिन हो जाता है। इसलिए छोटे-छोटे रोजगारों के साधन उपलब्ध कराकर इसकी शुरुआत की गयी। नाई को कटिंग वाली कुर्सी, दर्जी का काम करने वालों को सिलाई मशीनें, ढाबे वालों को बर्तन व बढ़ई को औजार दिए गये। लद्दाख में झरने के पानी से चलने वाली रैनटैक मशीनों से गृहणियां आटे व सत्तू की पिसाई करती हैं। बाढ़ में 250 रैनटैक मशीने बह गईं थी, सेवाभारती ने 90 लोगों को रैनटैक मशीनें दी।
अकेले चोगलमसर में ही 240 घर बह गए थे। अनेकों स्वयंसेवी संगठनों ने राहत कार्यों के समापन के बाद अपना बोरिया बिस्तर समेट लिया किंतु सेवाभारती ने इन बेघर लोगों को घर देने का निश्चय किया। इतना ही नहीं चोगलमसर में विस्थापितों के लिए हिल काउंसिल (सरकार) द्वारा बनायी जा रही सोलर कालोनी में सेवाभारती ने एक मेडिकल हेल्प सेंटर व बहुउद्देश्यीय सेवा गृह भी बनाया। यहां एक प्रमुख अधिकारी तेनसिंग दोरज्या बताते हैं कि “सेवाभारती ने पीड़ितों को 100 घर बनाकर पुनर्वास में सहयोग किया तथा सरकारी विद्यालय में पुस्तकें,यूनिफॉर्म एवं पानी की टंकी उपलब्ध कराई।” आपदा से पुनर्वास की इस पूरी यात्रा में स्वयंसेवकों ने खेतों पर जमे मलवे को जेसीबी से हटाने से लेकर शवों के अंतिम संस्कार तक सभी कार्यों को कुशलता से संभाला।
तत्कालीन विभाग कार्यवाह बिजाय चिगलमत्ता बताते हैं कि “यह शाखा के संस्कार ही थे कि प्राथमिक शिक्षा वर्ग में आए संघ के स्वयंसेवक बिना एक पल गंवाए अपनी जान जोखिम में डालकर मदद में जुट गये एवं 27 व्यक्तियों की जिंदगी बचा ली।”
आपदा के दशकों पश्चात भी प्रभावित परिवारों के लिए अनेकों सेवाकार्य निरन्तर चल रहे हैं।
संपर्क :– जय देव सिंह