Haryana: केन्द्रीय खेल मंत्रालय ने 32 खिलाड़ियों को शॉर्टलिस्ट करते हुए उन्हें अर्जुन पुरस्कार देने की घोषणा की है. इनमें हिसार जिले के दो खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर स्वीटी बूरा व हॉकी खिलाड़ी संजय शामिल है. जिले के गांव घिराय की निवासी एवं वर्तमान में हिसार के सेक्टर 1-4 में रहने वाली स्वीटी बूरा 23 मार्च 2023 को लाइट हैवी वेट कैटेगरी में चीन की वांग लीना को 3-4 से हराकर वर्ल्ड चैंपियन बनी थी. ऐसा करने वाली वह सातवीं भारतीय बॉक्सर थी. उनकी इसी उपलब्धियों को देखते हुए उनका नाम शॉर्ट लिस्ट किया गया है. जिले के घिराय गांव में 10 जनवरी 1993 को एक किसान परिवार में स्वीटी बूरा का जन्म हुआ था.
स्वीटी बूरा का शुरुआत से ही रुझान कबड्डी की तरफ था. वह हरियाणा से कबड्डी की स्टेट लेवल प्लेयर भी बनीं. हालांकि, साल 2009 में उनके जीवन ने करवट ली. पिता महेंद्र सिंह बूरा ने बताया कि स्वीटी ने कबड्डी छोड़ बॉक्सिंग शुरू की. इसके बाद स्वीटी ने भी कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. एशियन चैम्पियनशिप में 2015 में सिल्वर, 2022 में ब्रॉन्ज और 2023 में गोल्ड मेडल हासिल कर चुकीं.
2017 में हरियाणा सरकार ने उन्हें भीम अवॉर्ड से सम्मानित किया था. 23 मार्च 2023 को लाइट हैवीवेट कैटेगरी में चीन की वांग लीना को 3-4 से हराकर वर्ल्ड चैम्पियन बनने वाली सातवीं भारतीय बॉक्सर बनीं. स्वीटी के पिता महेंदर सिंह बताते हैं ‘स्वीटी पहले गांव में कबड्डी खेलती थी. हम उसे ट्रायल के लिए साई (स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया), हिसार के एसटीसी (स्पोर्ट्स ट्रेनिंग सेंटर) में ले गए, लेकिन वहां कबड्डी नहीं होती थी.
स्वीटी की फिजीक देख कोच ने कहा कि बॉक्सिंग का ट्रायल दे दो. स्वीटी राजी थी, कोच ने उसे बॉक्सिंग के नियम बताए और डिफेंड करना सिखाया. स्वीटी का बॉक्सिंग ट्रायल हुआ. उसने उन लड़कियों को हरा दिया, जो दो साल से ट्रेनिंग कर रही थीं. कोच ने हमसे पूछा भी कि ये पहले से बॉक्सिंग करती थी? हमने कहा, नहीं, बस कबड्डी खेलती है. वहीं, बच्चों में थोड़ी बहुत मार-पीट हो जाती है. ये सुनकर कोच हंसने लगे. वर्ष 2009 में साई, हिसार में उसका एडमिशन बॉक्सिंग में हो गया. इसी तरह हॉकी प्लेयर संजय कालीरावण पेरिस ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली टीम में शामिल थे. संजय परिवार के साथ जिले के डाबड़ा गांव के रहने वाले हैं.
इसी तरह हॉकी खिलाड़ी संजय की उपलब्धियां भी कम नहीं है. संजय कालीरावणा ने सात साल की उम्र में हॉकी थामी थी. आर्थिक तंगी के कारण वह हॉकी नहीं खरीद सके थे. एक माह तक अपने सीनियर्स की हॉकी लेकर प्रैक्टिस की. इसके बाद कोच राजेंद्र सिहाग ने हॉकी दिलाई तो संजय ने हॉकी में आज नाम चमका दिया. संजय के पिता नेकीराम खेतीबाड़ी कर परिवार का पालन पोषण करते हैं. वर्ष 2008 में जब संजय के चाचा के बेटे ने हॉकी का प्रशिक्षण लेना शुरू किया तो वह भी उसके साथ दो-तीन दिन गया. मैदान में खिलाड़ियों के हाथ में हॉकी देख उसने हॉकी सीखने की ठानी. संजय स्कूली इंडिया टीम के कैप्टन रह चुके हैं. इसके अलावा जूनियर, सब जूनियर चंडीगढ़ टीम की कप्तानी की है. उन्होंने नेशनल से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 30 से अधिक मेडल हासिल किए हैं. हॉकी प्लेयर संजय पेरिस ओलिंपिक में मेडल जीतने वाले टीम का हिस्सा थे.
साभार – हिंदुस्थान समाचार
ये भी पढ़ें: मनु भाकर, डी गुकेश समेत इन खिलाड़ियों को मिलेगा खेल रत्न, यहां देखें पूरी लिस्ट