Gurugram Election Result: लोकसभा चुनाव-2024 में इंडिया गठबंधन प्रत्याशी राज बब्बर को अपनों से भी धोखा मिला है. सिर्फ भाजपा प्रत्याशी राव इंद्रजीत सिंह ने नहीं हराया, बल्कि स्थानीय कांग्रेसी नेताओं की निष्क्रियता से भी वे हारे हैं. गठबंधन में शामिल रही आम आदमी पार्टी ने भी गठबंधन धर्म ठीक से नहीं निभाया.
इंद्रजीत से ही नहीं अपनों की निष्क्रियता से भी हारे हैं राज बब्बर
सोशल मीडिया पर बड़ी-बड़ी बातें करने वाले नेताओं ने उनके लिए मेहनत नहीं की. कुछ नेता मजबूती से साथ खड़े रहे. कुछ नेता बब्बर के साथ फोटो सेशन में ही व्यस्त रहते थे और फिर अपना सोशल मीडिया अपडेट करते थे. जनता के बीच जाकर वोट प्रतिशत बढ़ाने का काम ये नेता नहीं कर पाए. वर्ष 1991 से 1996 तक तीन बार मंत्री रहे राव धर्मपाल सिंह अंतिम बार बादशाहपुर विधानसभा सीट से विधायक बने थे. उनकी मजबूत सीट रही बादशाहपुर से बहुत बड़े अंतर से राज बब्बर हारे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ चुके पूर्व मंत्री स्वर्गीय राव धर्मपाल सिंह के पुत्र विरेंद्र सिंह का इस चुनाव में क्या योगदान रहा.
बब्बर के चुनाव प्रचार में कांग्रेस के बड़े नेताओं ने दूरी बनाए रखी
कांग्रेस के जहां मजबूत नेता नहीं थे वहां से कांग्रेस जीती. जहां नेता खुद को मजबूत दिखा रहे थे वहां से कांग्रेस हार गई. ऐसी तस्वीर बादशाहपुर की भी रही और पटौदी विधानसभा की भी. नेताओं ने राज बब्बर का अपने स्तर पर चुनाव प्रचार में कोई ध्यान नहीं दिया। कुछ नेता सेलिब्रिटी राज बब्बर के साथ-साथ रहने में ही खुद को प्रमोट कर रहे थे. सबके साथ आत्मीयता से मिलना राज बब्बर का स्वभाव है, लेकिन अपने साथ रहने वाले नेताओं की कार्यप्रणाली पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया. आम आदमी पार्टी का भले ही इंडिया गठबंधन के तहत राज बब्बर का साथ हो, लेकिन जमीनी स्तर पर आम आदमी पार्टी को राज बब्बर से शायद कोई सरोकार ही नहीं था. टिकट ना मिलने पर रूठे पूर्व मंत्री कैप्टन अजय यादव को भले ही राज बब्बर ने मना लिया हो, लेकिन उनके प्रचार में कैप्टन अजय यादव उनके विधायक पुत्र चिरंजीव राव का कोई रोल नजर नहीं आया. हालांकि राज बब्बर उनके लिए यह जरूर कहते रहे कि वे साथ मेहनत कर रहे हैं. अब भी कैप्टन अजय यादव उनको टिकट मिलने पर गुडगांव से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी एवं पूर्व मंत्री सुखबीर कटारिया भी चुनाव में कटे से नजर आए. उन्होंने भी चुनाव में अपने स्तर पर कुछ खास नहीं किया. यह हाल तो तब रहा जब राज बब्बर पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा की पसंद के उम्मीदवार थे और सुखबीर कटारिया हुड्डा खेमे के नेता हैं. उनकी यह नैतिक जिम्मेदारी बनती थी कि वे चुनाव प्रचार में निकलते.
साभार – हिंदुस्थान समाचार