अमेरिका की सत्ता में वापस आने के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ताबड़तोड़ फैसले ले रहे हैं और नई घोषणाएं कर रहे हैं. इन्होंने जहां एक तरफ पूरी दुनिया की नींद उड़ा दी है तो वहीं दूसरी तरफ कई देशों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है. अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने अमेरिका फर्स्ट के नीति को विस्तार देने के लिए सभी विदेशी आर्थिक मदद को निलंबित कर दिया है. जानकारी के मुताबिक दोबारा जांचने के बाद ही (वो देश मदद के लायक है या नहीं) इसे दोबारा शुरू किया जाएगा.
ट्रंप ने 20 जनवरी को सत्ता संभालने के साथ कई आदेशों पर साइन किए थे उसमें विदेशी मदद को लेकर भी आदेश था. इसे दूसरे देशों में दिए जाने वाले आर्थिक फंड को 90 दिनों के लिए तत्काल प्रभाव से खत्म कर दिया गया था. इसमें सभी प्रोजेक्ट के दोबारा मूल्यांकन की बात की थी. बता दें इस निलंबन में लगभग सभी देशों पर रोक लगा दी है केवल इजरायल, मिस्त्र और मध्य पूर्वी अमेरिकी सहयोगियों को बाहर रखा गया है.
अमेरिका दुनिया में आर्थिक मदद करने वाला इकलौता डोनर है. साल 2023 में आर्थिक मदद के तौर पर अंतर्राष्ट्रीय विकास के लिए अमेरिकी एजेंसी United States Agency for International Development (USAID) ने 72 अरब डॉलर बाटे. इसमें बांग्लादेश को 40.1 और पाकिस्तान को 23.2 करोड़ डॉलर की मदद की गई थी.
पाकिस्तान की टूटी कमर
इस समय कंगाली और बदहाली से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए अमेरिकी सरकार की तरफ से कई तरह से डबलपमेंट प्रोजेक्ट्स चलाए जा रहे थे. मगर ट्रंप के इस फैसले के बाद सभी रुक गए हैं. वहीं सांस्कृतिक संरक्षण के लिए दिए जाने वाले एंबेसडर फंड को भी निलंबित कर दिया गया है. वर्तमान में पाकिस्तान के ऊर्जा क्षेत्र के 5 अन्य प्रोजेक्ट पर भी ताला लगा दिया है. विदेश मंत्रालय के अनुसार दोबारा मुल्यांकन करने के बाद ही इन प्रोग्राम्स को दोबारा शुरू किया जाएगा.
बांग्लादेश को लगा बड़ा झटका
राजनेतिक अस्थिरता का सामना कर रहे बांग्लादेश को अब अमेरिका की तरफ से भी बड़ा झटका दे दिया गया है. बता दें कि बांग्लादेश USAID के तहत चलाए जाने वाले डबलपमेंट प्रोजेक्ट से सबसे ज्यादा आर्थिक मदद पाने वाला देश है. यह एजेंसी वहां पिछले कई सालों से डपलपमेंट के काफी सारे प्रोजेक्ट्स को चलाया जा रहा है. बांग्लादेश शीर्ष 10 देशों में 7वें स्थान पर आता है जहां अमेरिका की तरफ से आर्थिक मदद दी जाती है. पिछले साल एक रिपोर्ट के मुताबिक अकेले बांग्लादेश में ही 49 करोड़ डॉलर की मदद दी गई है.
ट्रंप के विदेशी मदद रोकने का आदेश मोहम्मद युनूस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के लिए बड़ा झटका है. क्योंकि पिछले साल उग्र छात्र आंदोलन की वजह से बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को पीएम का पद छोड़कर भारत आना पड़ा था. जिसके बाद आंदोलन से अस्थिर हुआ बांग्लादेश की अभी भी पूरी तरह से स्थिर नहीं हो पाया है.
कोविड-19 की महामारी से पहले बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था काफी बेहतरीन थी, लेकिन कोरोना महामारी के बाद मंहगाई, विदेशी कर्जा और बेरोजगारी में देश पूरी तरह से डूबता चला गया. इतना नहीं बाद में बांग्लादेश में हुए तख्ता पलट के बाद आए दिन अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमले होते हुए नजर आ रहे हैं. जिससे देश में राजनीतिक स्थिरता लाना मुश्किल है.
उत्तरी भारत में जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल अफेयर्स की प्रोफेसर श्रीराधा दत्ता ने एक न्यूज एजेंसी से बात करते हुए कहा कि USAID की मदद रोकने से कई परियोजनाओं में असर देखने को मिल सकता है. आगे उन्होंने कहा कि रिपब्लिकन प्रशासन अकसर मदद में कटौती करता है और हर बार इस पार्टी का राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद प्रोजेक्ट्स की समीक्षा करता है.
आगे उन्होंने कहा कि अमेरिका की मदद से बांग्लादेश के स्कूलों को साफ पीने का पानी और कंप्यूटर की सुविधा प्रदान की जाती है. और अगर अमेरिका अपनी इस मदद को वापस लेने का फैसला करता है, तो इसे बांग्लादेश पर काफी असर देखने को मिल सकता है. आगे दत्ता ने कहा कि ट्रंप केवल उन्हीं परियोजनाओं को आर्थिक मदद देंगे , जो उनके विदेशी नीति के उद्देश्यों के अनुरप होगीं.
नेपाल पर दिखेगा असर
बांग्लादेश-पाकिस्तान के अलावा भारत के पड़ोसी देश नेपाल को भी अमेरिका से आर्थिक मदद मिलती है. नेपाल विकास कार्यों के लिए अमेरिका से मदद पाने वाले नेपाल दुनिया का 19वां देश है.
बता दें, USAID ने साल 1951 में नेपाल को 1.5 अरब डॉलर, साल 2018-2019 में 12.5 करोड़ डॉलर और साल 2020-2021 में अमेरिका ने नेपाल को 10.594 करोड़ डॉलर की सहायता दी थी.
अमेरिका की तरफ से नेपाल देश में आर्थिक विकास,शिक्षा, स्वास्थ्य, इंफ्रास्ट्रक्चर और मानवीय सहायता और महिला एवं बाल सशक्तिकरण जैसे कार्यक्रम चल रहे हैं.
ट्रंप द्वारा किए गए फैसले के बाद से नेपाल में चल रहे USAID के द्वारा प्रोगाम्स पर असर देखने को मिल सकता है. यदि सभी जांच के बाद भी अमेरिका इस फैसले को वापस नहीं लेते हैं, तो इसे नेपाल को झटका लगने की पूरी उम्मीद है.
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