Gyanvapi Case: ज्ञानवापी के मूल 32 साल पुराने मामले में शुक्रवार को सिविल जज सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक कोर्ट युगुल शंभू की अदालत ने वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी का आवेदन खारिज कर दिया. न्यायालय के इस फैसले से वादी हिन्दू पक्ष को बड़ा झटका लगा है. फास्ट ट्रैक कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि एएसआई सर्वे (ASI Survey) का शेष हिस्सा सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर संरक्षित है. इसके साथ ही वादी पक्ष ने सम्पूर्ण सर्वेक्षण करने की मांग के लिए ठोस कारण प्रस्तुत नहीं किया गया है. इसलिए आगे का सर्वेक्षण आवश्यक नहीं है.
वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी और उनके अधिवक्ता मदन मोहन ने बताया कि हम निचली अदालत के आदेश को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती देंगे. कोर्ट के आदेश की कॉपी का इंतजार है. वादमित्र ने कहा कि पिछला एएसआई सर्वे अधूरा हुआ. बिना खुदाई के सही रिपोर्ट पेश करना संभव नहीं है. इसलिए ज्ञानवापी क्षेत्र में खुदाई कराने की मांग की गई. वजू खाना, मुख्य गुंबद के नीचे सर्वे नहीं हुआ है. सर्वे सिर्फ एएसआई टीम ने किया है जबकि हाई कोर्ट ने आदेश दिया था कि उसमें पांच सदस्यों की टीम एकत्र करनी थी. एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी का एक विशेषज्ञ को भी इसमें रहना था लेकिन ऐसा नहीं किया गया. एएसआई बिना खुदाई के सही रिपोर्ट नहीं दे सकती.
इसके पहले ज्ञानवापी से जुड़े वर्ष 1991 के लार्ड विश्वेश्वर वाद में प्रतिवादी पक्ष अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के अधिवक्ताओं ने न्यायालय में अपना पक्ष रखा था. मसाजिद कमेटी और वक्फ बोर्ड के अधिवक्ताओं ने अपनी-अपनी दलील में ज्ञानवापी में खुदाई कराकर एएसआई सर्वे कराने का विरोध किया था. साथ ही इलाहाबाद हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णय का विवरण और उसकी नकल न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की थी. इस मामले में दोनों पक्षों की बहस पूरी होने के बाद अदालत ने पत्रावली आदेश के लिए सुरक्षित रख लिया. इसके पहले की सुनवाई में वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी की ओर से जवाबी दलील दी गई.
गौरतलब है कि वर्ष 1991 के लार्ड विश्वेश्वर वाद में वादी हिन्दू पक्ष ने ज्ञानवापी के सेंट्रल डोम के नीचे शिवलिंग होने का दावा किया था. वादी पक्ष ने ज्ञानवापी परिसर के बचे शेष स्थल की खुदाई करा कर एएसआई सर्वे कराने की मांग अदालत से वाद के जरिए की. वादी पक्ष ने रकबा नंबर 9131 और 9132 का एएसआई सर्वे कराने की मांग पर अदालत में दलील भी पेश की थी. वर्ष 1991 में अधिवक्ता दान बहादुर, सोमनाथ व्यास, डॉक्टर रामरंग शर्मा और हरिहर पाण्डेय ने वाद दाखिल किया था. सुनवाई के बीच 1998 में प्रतिपक्ष ने हाई कोर्ट जाकर मामले में स्टे ले लिया. वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद स्टे प्रभावहीन होने पर वर्ष 2019 में हिन्दू पक्ष ने फिर एएसआई सर्वे की मांग रखी.
साभार – हिंदुस्थान समाचार
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