Marital Rape: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई टाल दी है. चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर दलीलें इस सप्ताह खत्म नहीं होती हैं तो इस पर फैसला 10 नवंबर के पहले संभव नहीं है, क्योंकि अगले हफ्ते दीपावली की छुट्टियां हैं. चीफ जस्टिस को 10 नवंबर को सेवानिवृत्त होना है, इसलिए अब इस मामले पर नई बेंच सुनवाई करेगी.
आज सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता के वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि वे दलीलें रखने के लिए एक दिन का समय लेंगे. एक और याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील इंदिरा जयसिंह, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि वे दलीलें रखने के लिए एक-एक दिन का समय लेंगे. सुनवाई के दौरान 17 अक्टूबर को एक याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील करुणा नंदी ने भारतीय दंड संहिता और भारतीय न्याय संहिता में मैरिटल रेप के प्रावधानों को रखा था. करुणा नंदी ने कहा था कि मैरिटल रेप के संबंध में जो अपवाद दिया गया है उसे निरस्त किया जाना चाहिए. तब कोर्ट ने कहा कि आप कह रही हैं कि ये प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन करते हैं. कोर्ट ने कहा कि संसद ने इस प्रावधान को पारित करते समय यही सोचा कि अगर 18 साल से ज्यादा की पत्नी से वो यौन संबंध बनाता है तो वो रेप नहीं होगा.
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने की मांग का विरोध किया है. मौजूदा कानून के मुताबिक पत्नी की इच्छा के बगैर जबरन संबंध बनाने पर भी पत्नी अपने पति पर बलात्कार का मुकदमा नहीं कर सकती. सरकार ने कानून में पति को मिली इस छूट का समर्थन किया है. केंद्र सरकार ने जोर देकर कहा कि इसका मतलब ये नहीं कि वैवाहिक संबंधों में पत्नी की इच्छा का कोई महत्व नहीं है. सरकार का कहना है कि अगर पत्नी की इच्छा के बिना पति जबरन संबंध बनाता है तो ऐसी सूरत में पति को सजा देने लिए पहले से वैकल्पिक कानूनी प्रावधान है. ऐसी स्थिति में घरेलू हिंसा कानून, महिलाओं की गरिमा भंग करने से जुड़े विभिन्न प्रावधान के तहत पति पर केस दर्ज किया जा सकता है लेकिन इस स्थिति की तुलना उस स्थिति से नहीं की जा सकती है, जहां बिना वैवाहिक संबंधों के कोई पुरुष जबरन किसी महिला के साथ संबंध बनाता है. वैवाहिक संबंधों और बिना वैवाहिक के बने ऐसे संबंधों में सजा एक नहीं हो सकती.
सुप्रीम कोर्ट ने 16 सितंबर, 2022 को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था. 11 मई, 2022 को दिल्ली हाई कोर्ट ने मैरिटल रेप के मामले पर विभाजित फैसला दिया था. जस्टिस राजीव शकधर ने जहां भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद को असंवैधानिक करार दिया था वहीं जस्टिस सी हरिशंकर ने इसे सही करार दिया था.
साभार – हिंदुस्थान समाचार
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