Opinion: आजादी और विभाजन के बाद ऐतिहासिक विवाद और विचार-विमर्श का केंद्र रहे जम्मू-कश्मीर फिर नई इबारत लिखने जा रहा है. पांच अगस्त 2019 को स्वायत्तशासी राज्य से केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए जम्मू-कश्मीर का भूगोल लद्दाख के अलग होने के कारण पहले ही बदल चुका है. अरसे बाद तीन चरणों में विधानसभा चुनाव तय हो गया है. 2014 के बाद होने जा रहा नए जम्मू-कश्मीर का यह विधानसभा चुनाव इतिहास का हिस्सा होगा, इस साल जून से आतंकवादियों के आए दिन हमलों और सुरक्षाकर्मियों की शहादत के बीच सुप्रीम कोर्ट के प्रति सम्मान जताने के चुनाव आयोग के फैसले से अवाम को स्थानीय स्तर पर नुमाइंदे मिल जाएंगे. इससे उनकी अपने जनप्रतिनिधि चुनने के बाद उनकी समस्याओं पर सुनवाई और समाधान नजदीक ही नहीं, तेजी से भी होने की उम्मीद बढ़ गई है। 87.09 लाख मतदाताओं वाले केंद्र शासित प्रदेश में सभी दलों के लिए पूर्ण राज्य का मुद्दा सबसे अहम है. अनुच्छेद 370 के खात्मे के समय गृह मंत्री अमित शाह ने आश्वासन दिया था कि विधानसभा चुनाव के बाद उचित समय पर राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा. जमीन और नौकरी का अधिकार, बेरोजगारी, महंगाई, अलगाववाद और सुरक्षा के हालात भी चुनाव पर अपनी छाप जरूर छोड़ेंगे.
भाजपा जम्मू-कश्मीर में अब्दुल्ला और मुफ्ती के परिवारवाद पर 2014 के लोकसभा चुनाव से ही प्रखरता से प्रहार करती रही है. 2019 में अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद इसे बड़ा मुद्दा बना दिया. 2024 के लोकसभा चुनाव में अवाम के बदले मिजाज का असर दिखा. यही वजह रही कि दो पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला बारामुला और महबूबा मुफ्ती अनंतनाग-राजोरी सीट पर हार गए. इंडिया गठबंधन में आम राय नहीं बन पाई. उमर की पराजय अप्रत्याशित रही. महबूबा की शिकस्त का कारण भी नेशनल कांफ्रेंस रही. हालांकि पांच में से दो संसदीय सीटों पर लड़ी कांग्रेस सबसे अधिक 29.38 प्रतिशत वोट पाने के बावजूद शून्य पर रही. दो सीटों पर चुनाव मैदान में उतरी भाजपा ने 24.26 फीसदी वोट के साथ दो सीटें जीत लीं। नेशनल कांफ्रेंस ने भी दो सीटें हासिल कीं पर 22.30 प्रतिशत वोट लेकर वह तीसरे स्थान पर खिसक गई. लोकसभा चुनाव के आंकड़ों में साफ है कि नेशनल कांफ्रेंस 34 विधानसभा क्षेत्रों में आगे रही. भाजपा ने 28, कांग्रेस सात और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी 5 सीटों पर बढ़त बनाई. बारामुला संसदीय सीट पर निर्दलीय जीते इंजीनियर रशीद 14 विधानसभा क्षेत्रों में अव्वल रहे. भाजपा की सहयोगी जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी और पीपुल्स कांफ्रेंस एक-एक क्षेत्र में आगे रही.
2014 के विधानसभा चुनाव में 25 साल बाद 66.4 फीसदी मतदान हुआ था. उस समय लद्दाख की चार सीटों को मिलाकर 87 सीटें थीं. भाजपा ने इनमें से 25 सीटें जीती थीं, जबकि उसे 23.2 फीसदी वोट मिले थे. पीडीपी की सीटें सबसे अधिक 28 थीं लेकिन वोट प्रतिशत 22.9 रहा. नेशनल कांफ्रेंस को 15 सीटें और 20.8 फीसदी मत मिले. कांग्रेस ने 18.2 प्रतिशत वोट हासिल कर 12 सीटें पाईं थीं. त्रिशंकु विधानसभा के कारण अरसे तक राज्यपाल शासन के बाद मुफ्ती मोहम्मद सईद के नेतृत्व में सरकार बनी थी. अब स्थितियां बदली हुई हैं. नए दौर में नतीजे नए गठबंधन के नेताओं और नीतियों पर निर्भर करेंगे. वैसे, 2024 में जम्मू-कश्मीर को ‘जन्नत-ए-जम्हूरियत’ के तौर पर दर्ज कराने के लिए भाजपा कोई कसर नहीं छोड़ेगी. भाजपा को भरोसा है कि बरसों बाद पहली बार विधानसभा चुनाव में मतदान का हक पाने वाले मतदाता और बेहतरी के लिए उसे चुनने में गर्व महसूस करेंगे. अनुच्छेद 370 हटाए जाने से पहले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मतदाता सूची का आधार अलग-अलग होने के कारण मतदाताओं की संख्या में ही नहीं, मंशा में भी भारी अंतर होता था. अब नए माहौल में यहां नई इबारत के साथ-साथ नया इतिहास लिखा जाना तय है. पाकिस्तान समेत दुनिया के लिए चुनाव पूरा होने तक जम्मू-कश्मीर कौतूहल का विषय बना रहेगा.
चुनावी लिहाज से परिसीमन के बाद से जम्मू और कश्मीर में सीटों का संतुलन बन गया है. कुल 90 विधानसभा सीटों में जम्मू क्षेत्र 37 से बढ़ कर 43 हो गई हैं, जबकि कश्मीर में यह आंकड़ा 46 से केवल 47 तक पहुंचा है. यही नहीं, परिसीमन के बाद नौ सीटें अनुसूचित जनजाति और सात सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित की गई हैं. भाजपा का जोर इन सीटों के जीतने पर है. गुज्जर बक्करवाल समुदाय के साथ ही पहाड़ी समुदाय को आरक्षण देकर भाजपा ने पहले से ही तैयारी कर ली है. यह भी स्पष्ट है कि पहली बार भाजपा की सरकार बनने पर सत्ता की कमान डोगरा बिरादरी के हाथ में होगी. मुख्यमंत्री पद के लिए उसने चेहरा तय है. अब तक गुलाम नवी आजाद के अलावा सभी मुख्यमंत्री कश्मीर घाटी के ही रहे हैं. महबूबा मुफ्ती के साथ एक बार सरकार में शामिल रह चुकी भाजपा को सरकार बनाने के लिए कम से कम 46 सीटों पर जीत हासिल करनी होगी. फिलहाल, 30 सीटों पर आगे भाजपा के लिए कश्मीर घाटी में पीपुल्स कांफ्रेंस और अपनी पार्टी के साथ ही जम्मू संभाग में गुलाम नवी आजाद की अगुआई वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी में किसी किस्म की समझदारी उसके लिए लाभदायक हो सकती है.
प्रदीप मिश्र
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं.)
साभार – हिंदुस्थान समाचार